सोमवार, 26 जुलाई 2010

आरटीआई बन रहा है बेसहारों का सहारा

आयोग
लोगों की शिकायत का निवारण नहीं कर सकता है मगर मामले की संबंधित सूचना निर्णायक साबित हो सकती है।

प्रेम सिंह राणा, राज्य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त
हिमाचल प्रदेश राज्य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त प्रेम सिंह राणा भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1970 कॉडर के अधिकारी रह चुके हैं। सेवानिवृत्ति के बाद प्रदेश सरकार ने उन्हेंं मार्र्च 2006 में आयोग के आयुक्त पद का दायित्व सौंपा। वे मानते हैं कि उनके सेवाकाल के दौरान आधारभूत ढ़ाचा (खासतौर पर सड़क) और पॉवर क्षेत्र में फोकस करने की प्राथमिकताएं थीं और कमोवेश आज भी राज्य की वहीं प्राथमिकताएं हैं। 1995 में पहली बार विश्व बैंक की सहायता प्राप्त करने के लिए 10 सड़कों का प्रोजेक्ट केंद्र को भेजा गया था। आधारभूत ढ़ाचागत क्षेत्र विकसित होने से अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा और लोगों की आर्थिकी के लिए कई तरह के विकल्प खुलेंगे। ऊर्जा क्षेत्र में जितना हो सके सरकार को निवेश करना चाहिए। कुल मिलाकर सरकार के लिए सड़क व ऊर्जा क्षेत्र फोकस एरिया होने चाहिए।
आयोग आयुक्त राणा का कहना है कि आयोग लोगों की शिकायत का निवारण नहीं कर सकता है मगर मामले की संबंधित सूचना निर्णायक साबित हो सकती है। लोगों को भ्रम रहता है कि समस्या का समाधान आयोग करेगा, ऐसा नहीं है। सूचना के लिए आवेदन में ध्यान देना चाहिए कि दस्तावेज में मौजूद रिकॉर्ड मांगा जाए। फाइल या दस्तावेज में ऐसा क्यों लिखा गया है इसका जवाब नहीं दिया जा सकता है। केवल जो दर्ज है उसकी प्रति ही दी जा सकती है।
छह मामलों में हाईकोर्ट में याचिका
आयोग के फैसले के खिलाफ 6 मामलों में अपील दायर हुई। एक मामले में राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से जेएन शर्मा का मामला न्यायालय पहुंचा। राज्य सचिवालय ने सुरेंद्र सिंह मनकोटिया मामले व गृह विभाग ने संजय गुप्ता व पीके आदित्य मामले में आयोग के निर्णय को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। नगर निगम से जुड़े दो मामलों में सेवानिवृत्त न्यायाधीश एमआर वर्मा ने आयोग के निर्णय के खिलाफ याचिका दायर की है।
आयोग पर कर्मचारियों की बढ़ती निर्भरता
सरकारी कर्मचारियों के आवेदन अधिकाधिक संख्या में आते हैं। विभाग में दूसरे कर्मचारियों के वेतन व प्रमोशन से जुड़े ऐसे मामलों में सूचना प्राप्त की जाती है। अपनी वेतन विसंगतियों को दूर करने के लिए इस प्रकार की सूचनाओं की मदद ली जा रही है। आरटीआई आने से पहले राजस्व से जुड़ी जानकारी लेना सबसे मुश्किल काम होता था मगर इस कानून के आने के बाद कानूनी झगड़ों को निपटाने में सहायता मिली है। सरकारी रिकॉर्ड की सूचना लेने के लिए आवेदन आ रहे हैं।
कैसे प्राप्त कर सकते हैं सूचना
सादे कागज पर संबंधित विषय को लेेकर सूचना मांगी जा सकती है। प्रार्थी को हक है कि वह विभाग में जन सूचना अधिकारी के समक्ष आवेदन कर सकता है। सूचना नहीं मिलने पर उससे उपर के अधिकारी के पास अपील करने का अधिकार प्रार्थी के पास है। यदि प्रार्थी चाहे तो सीधे आयोग में भी सूचना के लिए आवेदन कर सकता है।
जागरूक हैं प्रदेश के लोग
राणा का कहना है कि प्रदेश के लोगों के जागरूक होने का पता इस बात से चल जाता है कि मात्र चार साल के भीतर सूचना के लिए प्राप्त हुए आवेदनों की संख्या चार गुणा हो गई है। 2006-07 के दौरान पहले साल 2654 आवेदन आए थे। 2007-08 में 10105, 2008-09 में 17869 व 2009-10 में 25000 आवेदन और इस साल आवेदनों की संख्या 35 हजार का आंकड़ा पार कर सकती है। ऐसा आकलन है कि विभिन्न कारणों से पहले साल 5 फीसदी आवेदन हुए और साल दर साल इसमें कमी आती गई। 2007-2008 में तीन और 2009-2010 मेें दो फीसदी रह गए हैं। निचले स्तर पर सूचना देने का प्रतिशत 98 फीसदी रहा है। आयोग के स्तर पर फिलहाल कोई मामला लंबित नहीं पड़ा है।
...सरकारी योजनाओं की सूचना मांग रहे है
व्यक्तिगत सूचना लेने के अलावा अब ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की विकास योजनाओं को लेकर भी सूचना के लिए ओवदन आते हैं। मनरेगा में कितना पैसा खर्च किया गया और कामगारों के वेतन की जानकारी प्राप्त हो रही है। कुछ समय पहले पीटीए की नियुक्तियों से जुड़ी सूचना बड़े पैमाने पर मांगी गई। इसी तरह से ग्रामीण विकास, लोक निर्माण, सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य, वन व पुलिस विभाग से सूचनाएं प्राप्त की जा रही हैं। आंगनबाडी महिला कार्यकत्र्ताओं ने भी सरकार के नियमों को लेकर सूचना के लिए आवेदन किया। सड़कों के निर्माण में लगे ठेकेदारों के कामकाज को लेकर सूचनाएं लेने से निर्माण में भी अपेक्षाकृत सुधार आया है।
पंचायत सचिव को हुआ था पहला जुर्माना
समय पर सूचना नहीं देने के एक मामले में 2008=09 के दौरान कांगड़ा जिले के पंचायत सचिव पर 250 रुपए का जुर्माना किया गया। आरटीआई कानून लागू होने पर पहलेे साल आयोग ने किसी पर जुर्माना नहीं लगाया था। सूचना देने में देरी करने पर 250 रुपए प्रति दिन के हिसाब से अधिकतम 100 दिन तक 25 हजार का जुर्माना करने का प्रावधान है। निर्धारित 30 दिन की अवधि के भीतर जानबूझकर गलत जानकारी देने या फिर नहीं देने की स्थिति में ही जुर्माना लगाया जा सकता है।
सेवाकाल में सड़कों को दी प्राथमिकता
सेवाकाल के दौरान आधारभूत ढ़ाचा (खासतौर पर सड़क) और पॉवर क्षेत्र में फोकस करने की प्राथमिकताएं थीं
1995 में पहली बार विश्व बैंक की सहायता प्राप्त करने के लिए 10 सड़कों का प्रोजेक्ट केंद्र को भेजा गया था।
सड़कों के निर्माण में लगे ठेकेदारों के कामकाज को लेकर सूचनाएं लेने से निर्माण में भी अपेक्षाकृत सुधार आया है।

सोमवार, 19 जुलाई 2010

चाह कर भी माल रोड पर घूमने नहीं जा पातीं राज्यपाल



  • आत्मकथा पढऩे की फुर्सत किसे है, अच्छा हो कि हम आत्मचिंतन करें कि पावर में रहते लोगों का कितना भला किया

जब व्यक्ति वीवीआईपी की श्रेणी में आ जाए तो वह छोटी छोटी इच्छाओं को पूरा न कर पाने पर कैसे मन मसोस कर रह जाता है इसे हर हाइनेस उर्मिला सिंह की इस कसक से समझा जा सकता है कि वह चाहते हुए भी माल रोड पर आम जन की तरह नहीं घूम सकती। वे ठान लें तो प्रशासन को माल रोड पर उनकी पैदल यात्रा के लिए सारे इंतजाम पलक झपकते करना भी पड़े लेकिन वे नहीं चाहती कि सैलानी अनावश्यक परेशान हों। ईश्वर के प्रति आस्थावान हैं लेकिन रोज या प्रति मंगलवार संकटमोचन या जाखू स्थित प्राचीनतम हनुमान मंदिर दर्शन करने भी नहीं जा सकती। कारण वही कि आस्था के साथ दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु वीआईपी व्यवस्थाओं के कारण परेशान न हों, इसलिए राजभवन के गार्डन में ही एक स्थान पर मंदिर में हनुमान जी की स्थापना कर दी है। यही दर्शन पूजा कर लेती हैं। उनक ी इस सहजता वाले संस्कार को उनके पुत्र ने भी अपना लिया है। शिमला में कहीं आना-जाना भी हो तो योगेंद्र (बाबा) और उनकी पत्नी प्रीति बिना पहचान के ही आते जाते हैं। हिमाचल के संदर्भ में राज्यपाल कहतीं हैं इस प्रदेश की देश-विदेश में देवभूमि के रूप में पहचान है लेकिन मंदिरों का महत्व, उनका संरक्षण बेहतर नजर नहीं आता। मेरा सुझाव है सरकार इस देवभूमि के सम्मान की वृद्धि के बारे में और गंभीरता दिखाए। टूरिज्म में करना चाहे तो बहुत कुछ किया जा सकता है। नारकंडा के हाटकोटी, सांगला वैली तो स्वर्ग समान हैं, निजी क्षेत्र को हट बनाने के लिए क्यों सौपा मुझे तो समझ आता नहीं इसे तो खुद सरकार बेहतर तरीके से विकसित कर सकती है। कुल्लू मनाली से ज्यादा खूबसूरत हैं ये क्षेत्र। लंबे राजनीतिक करिअर, राजीव एवं सोनिया गांधी सहित उस दौर के अन्य शीर्षस्थ नेताओं से नजदीकी के बावजूद उनका अभी न भविष्य में आत्मकथा लिखने का कोई इरादा है। उनका कहना था अब आत्मकथा पढऩे की फुर्सत किसे है? आत्म कथा लिखने से तो अच्छा यह है कि व्यक्ति एक उम्र के बाद यह चिंतन जरूर करे कि ईश्वर की कृपा से उसे जो मानव जीवन मिला तो उसने पूरी जिंदगी में लोगोंं की भलाई के कितने काम किए।

शाकाहारी हूं, सोच अच्छा तो मन अच्छा

सादा जीवन, शाकाहारी भोजन तथा वैचारिक शुद्धता में विश्वास करने वाली राज्यपाल ईश्वर में गहरी आस्था रखती हैं। दिखावा पसंद नहीं, राजभवन जिस जगह स्थित है वहां वातावरण में ठंडक कुछ ज्यादा रहती है। राजभवन के सभी कमरों का तापमान गर्म रखने की आधुनिक व्यवस्था भी है लेकिन उन्हें यह इंतजाम रास नहीं आते, इनक ा आदी होने की अपेक्षा वे शाल ओढऩा ज्यादा पसंद करती है। साथ में यह भी कहती हैं कि रहो इस तरह की बाद में कभी अफसोस ना हो। चाहे बड़े पद वाला आदमी हो या छोटा आदमी, सब कु छ उसके सोच पर डिपेंड करता है। यदि सोच अच्छी है तो आदमी हर हाल में खुश रहेगा। मन अच्छा रहेगा तो उसके मन में किसी के प्रति बुरी सोच आएगी ही नहीं।

शिमला में नजर आए पूरे हिमाचल का कल्चर

शिमला को और कै से आकर्षक बनाया जा सकता है इस संबंध में भास्कर के साथ अपना वीजन शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि हिमाचल 12 महीनों टूरिस्ट के लिए एप्रोचेबल नहीं है लेकिन शिमला आने-जाने में टूरिस्ट के लिए ऐसी कोई समस्या नहीं है। इसका लाभ लिया जा सकता है, प्रदेश के 12 जिलों क ा जो कल्चर है उसे शिमला में किसी एक जगह डिसप्ले किया जा सकता है। उन क्षेत्रों के हस्त और काष्ठ शिल्प के लिए बाजार विकसित किया जा सकता है। इससे उस इलाके के पारंपरिक काम को संरक्षण के साथ उन लोगों को बाजार तथा शिमला आने वाले सैलानियों को पूरा हिमाचल एक छत के नीचे देखने समझने का अवसर मिलेगा।

बुजुर्गों के लिए बैटरी वाली गाड़ी चलानी चाहिए

शिमला के उतार चढ़ाव वाले रास्तों के कारण अन्य शहरों से आने वाले बुजुर्ग सैलानियों को होने वाली परेशानी से राज्यपाल का मन व्यथित होता है। नगर निगम की महापौर मधु सूद को उन्होंने सुझाव भी दिया था कि बैटरी चलित गाडिय़ा न्यूनतम शुल्क लेकर चलाई जा सकती हैं। इससे बुजुर्गों को आवागमन में सुविधा मिलेगी साथ ही पर्यावरण भी प्रभावित नहीं होगा। इसी तरह उन्होंने लोअर शिमला को जोडऩे वाली सीढिय़ों के साथ ही कुछ जगह एस्केलेटर लगाने का सुझाव भी दिया था। इन स्वचलित सीढिय़ों से लोगों को आवाजाही में राहत मिल सकती है। अभी लोग सीढिय़ों से नीचे तो उतर जाते हैं लेकिन ऊपर आने के लिए लंबा चक्कर लगा कर पैदल आते हैं।

लड़कियों क ी एजूकेशन के मामले में अच्छी स्थिति

हिमाचल की महिलाओं के प्रति राज्यपाल के मन में काफी सम्मान है इसका कारण बताते हुए वे कहतीं हैं इस पहाड़ी प्रदेश की महिलाए बढ़ी मेहनती हैं, इसीलिए मैं इस प्रदेश को 'देवी भूमिÓ भी मानती हूं। लड़कियों के एजुके शन के मामले में वे सरकार के काम से संतुष्ट तो नजर आईं लेकिन यह भी कहा कि थोड़ी कसावट की जरूरत है। अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा मैं जब राजनीति में आई तब एक ही जुनून था मुझे पिछड़े, दलित, आदिवासी समाज के लिए कुछ करना है। ट्राइबल डिपार्टमेंट जब मिला तब बालिका शिक्षा के लिए खूब काम किया इसलिए कहा है कि लड़कियों के एजूकेशन के मामले में यहां और कसावट की जरूरत है।

...तब चूल्हा चोका भी संभालना पड़ता था

पति वीरेंद्र बहादुर सिंह 'पूर्व विधायकÓ के निधन के बाद विधायक क ा चुनाव लडऩे को वे उस समय की राजनीति और महिलाओं के लिए ज्यादा अवसर न होने की याद करते हुए कहती हैं तब चुनाव लडऩे के साथ चौका चूल्हा भी संभालना पड़ता था। जब पंचायत से लेकर नगर निगम तक महिलाओं के लिए पद आरक्षित किए जाने संबंधी संविधान संशोधन हुए, चुनावों में महिलाओं के लिए टिकट वितरण में विभिन्न वर्गों में संख्या आरक्षित की जाने लगी तब से महिलाओं की न सिर्फ राजनीति में भागीदारी बढ़ी है वरन उन्हें बराबरी का दर्जा भी मिला है। इसका काफी कुछ श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को जाता है। सिवनी जिले में लखनादौन से 1985 में विधायक पद के लिए पहला चुनाव लड़ा। तब कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार करने आए राजीव गांधी ने कहा था सिवनी जिले के पांच में से तीन सीटों पर महिलाओंं को टिकट दिया है। ये तीनों लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती हैं।

मप्र मंत्रिमंडल में लगातार 10 वर्ष मंत्री की हैसियत से वित्त, डेरी, आदिवासी, समाज कल्याण आदि मंत्रालय संभाले। मप्र प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष, अभा कांग्रेस कार्य समिति एवं अनुशासन समिति की सदस्य के साथ ही ट्राइबल नेशनल कमीशन की अध्यक्ष सहित राज्य सरकार के विभिन्न निगमों की अध्यक्ष भी रहीं। 6 अगस्त 1946 को फिंगेश्वर, रायपुर छत्तीसगढ़ में जन्मी उर्मिला सिंह क े दो पुत्र योगेंद्र सिंह, धर्मेंद्र सिंह तथा एक पुत्री रचना सिंह हैं। नाती-पोते वालीं हर हाइनेस राजभवन में अपने बड़े बेटे योगेंद्र (बाबा) सिंह और बहु प्रीति क े साथ रह रही हैं।

मध्यप्रदेश और हिमाचल का रिश्ता। इस संवैधानिक पद का मध्य प्रदेश से भी जुड़ाव रहा है। जब हिमाचल में राष्ट्रपति शासन था उस वक्त बैरिस्टर गुलशेर अहमद 30 जून से 26 नवंबर 93 राज्यपाल रहे। बाद में न्यायमूर्ति विष्णु सदाशिव कोकजे 8 जुलाई 2003 से 19 जुलाई 2008 तक रहे और अब उर्मिला सिंह राज्यपाल हैं। ये सभी मध्यप्रदेश से हैं।

झूठी तारीफ पसंद नहीं, अचार, मुरब्बे का शौक

आम धारणा है कि महिलाओं में अपनी तारीफ सुनने कि आदत होती है और झूठी तारीफ करके उनसे अपने मन का कार्य भी आसानी से कराया जा सकता है। राज्यपाल उर्मिला सिंह उन महिलाओं में से हैं जिन पर झूठी तारीफ का असर तो होता नहीं उल्टे वह यह भी भांप लेती है कि तारीफ करने वाला कि तनी बात सच्ची कह रहा है। हां आम गृहिणी की तरह उन्हें भी अचार, मुरब्बे का शौक है। खुद बनाए भले ही नहीं लेकिन राजभवन के खानसामा को हिदायत देने किचन में पहुंच जाती हैं और अपने स्वाद अनुसार मसाले डलवाती हैं। अचार बनवाना हो तो मसाले के संबंध में निर्देश देते जाती हैं। फिल्म देखे तो वर्षों हो गए, हां धार्मिक चैनलों पर क था प्रवचन जरूर सुन लेती हैं।

हिमाचल की 21वीं राज्यपाल

25 जनवरी 10 को उर्मिला सिंह को हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल मनोनीत किया गया। वे हिमाचल की 21वीं राज्यपाल हैं। इस राज्य के पहले राज्यपाल एस चक्र वर्ती (आइसीएस) थे, वे सन् 71 से 77 तक इस पद पर रहे। जहां तक किसी महिला को यह पद सौंपे जाने की बात है तो वे इस पद की गरिमा बढ़ाने वाली चौथी महिला हैं।

उनसे पहले प्रभा राव 17 नवंबर 95 से 25 जनवरी 10 तक, वीएस रमादेवी 26 जुलाई 1997 से 1 दिसंबर 99 तक तथा हिमाचल की पहली महिला राज्यपाल के रूप में शीला कौल 17 नवंबर 95 से 22 अप्रैल 1996 तक इस पद पर रही हैं।

गुरुवार, 15 जुलाई 2010

हर जिले में मिडिएशन सेंटर स्थापित करेंगे



हिमाचल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस कुरियन जोसेफ का मन भी कोर्ट के फैसलों से हटकर कुछ लिखने के लिए छटपटाता रहता है लेकिन वक्त नहीं मिलता। नियमित 16 से 18 घंटे की वर्किंग रहती है। हाई कोर्ट के बाद का समय रीडिंग के लिए रहता है। टीवी देखते नहीं और फिल्म देखे तो वर्षों हो गए। बचपन से लेकर अब बमुश्किल 20 फिल्में देखी होंगी। हिमाचल में उन्होंने चीफ जस्टिस पद की शपथ ली और कुछ दिनों बाद ही झारखंड में पदस्थ किए जाने के आदेश जारी हो गए थे। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने वह आदेश वापस ले लिया है। हिंदी बोल और समझ पाने में वे थोड़ी असुविधा जरूर महसूस करते हैं लेकिन आम आदमी की शीघ्र न्याय की अपेक्षा को वे बेहतर समझते हैं और जिस दिन से उन्होंने शपथ ली है उसी क्षण से बस उसी एक सूत्रीय एजेंडे पर वर्किंग कर रहे हैं कि शहर से लेकर गांव तक लोगों को त्वरित न्याय कैसे मिले। वरिष्ठ नागरिकों के न्यायालयीन मामलों का जल्द से जल्द निराकरण कैसे हो। उनकी सोच है कि न्याय मिलने में दस-बीस साल की देरी का मतलब है लोगों में हताशा के साथ, न्याय व्यवस्था से विश्वास उठना और भ्रष्टाचार फैलना।


मामलों के फटाफट निराकरण के संदर्भ में अपनी फ्यूचर प्लानिंग का खुलासा करते हुए उन्होंने भास्कर से चर्चा में कहा इसी साल के अंत तक हिमाचल के सभी जिलों मेंं मिडिएशन सेंटर स्थापित करना हैै। जिलों में ऐसे मामलों की छंटनी की जाएगी जिनमें वर्षों से तारीख पर तारीख पड़ रही है। ऐसे मामले मिडिएशन सेंटर के माध्यम से निपटाए जाएंगे। वादी प्रतिवादी दोनों को आमने सामने बैठाकर न्यायाधीश की मौजूदगी में समझौते के लिए दोनों पक्षों को राजी किया जाएगा।


ज्यूडिशियल स्टाफ को ट्रेङ्क्षनग देनी होगी


चीफ जस्टिस मानते हैं कि बिना ट्रेंड स्टाफ के मिडिएशन सेेंटर सक्सेस नहीे हो पाएंगे। चूंकि अभी स्टाफ ट्रेंड नहीं है इस कारण मिडिएशन के मकसद को समझता भी नहीं हैं। न्यायालयों के स्टाफ को इस संबंध में ट्रेनिंग देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी गठित कर रखी है इसकी सेवाएं लेंगे। स्टेट एवं जिला स्तर पर यह कमेटी विभिन्न कार्य दिवसों में न्यायालयीन स्टाफ के 15-15 सदस्यों को 40 घंटे का प्रशिक्षण देगी। दिल्ली, मुंबई, कर्नाटक के एक्सपर्ट अगले महीने से प्रशिक्षण देने आ रहे हैं। इन मिडिएशन सेंटरों के काम शुरू करने के बाद पेंडिंग मामलों में 30 फीसदी कमी आ जाएगी।


देश के कुछ बड़े शहरों की तर्ज पर हिमाचल में इवङ्क्षनग कोर्ट प्रारंभ करने में थोड़ा वक्त जरूर लगेगा लेकिन लंबित मामलों के शीघ्र निराकरण की दृष्टि से यह बेहद जरूरी भी है। जहो तक ई-फाइलिंग सिस्टम ज्यूडिशियल में लागू करना हर दृष्टि से बेहतर तो है लेकिन इसके लिए कोर्ट स्टाफ में नॉलेज, ट्रेङ्क्षनग और पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर होना भी जरूरी है। न सिर्फ स्टाफ वरन जजेस को भी ट्रेङ्क्षनग देना होगी, ई-फाइलिंग उपयोगी तो है लेकिन प्रोसेस जरा लंबा है।


ई-फाइलिंग शुरू होने के बाद तो न्यायालयों में मानसिक दबाव कम होने के साथ ही खर्च भी कम हो जाएगा। मैंने इससे पहले की व्यवस्था के तहत हिमाचल सरकार को सुझाव दिया है क्रेडिट कार्ड से कोर्ट फी जमा करने की व्यवस्था लागू की जानी चाहिए। इससे वकीलों का काम आसान होगा, टाइम, स्टेशनरी, आडिटिंग आदि की झंझट से भी राहत मिलेगी। कोर्ट वर्किंग में इंटरनेट का उपयोग बढऩे पर पल भर में कोर्ट फीस ट्रांसफर भी की जा सकेगी।


...सरकार पर निर्भर


सरकार स्तर पर ग्राम न्यायालय, मोबाइल कोर्ट की दिशा में तत्परता दिखाए जाने पर जो सबसे बड़ी राहत मिल सकती है वह यह कि ग्राम न्यायालयों से अधिकतम 90 दिनों में फैसले सुनाए जा सकेंगे। गांव-देहात के लोगों को न्यायालय के चक्कर लगाने और जटिल प्रक्रिया से भी राहत मिल जाएगी। मेरे स्तर पर तो सरकार को विस्तार से लिखा जा चुका है,अब सब कुछ हिमाचल सरकार पर निर्भर करता है। इस पर शीघ्र काम होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि राज्य में 18 रेवन्यू कोर्ट होने के बावजूद लोग हर तारीख पेशी पर नहीं जा पाते हैं।


पर्यावरणीय सुरक्षा प्रदान करेगी ग्रीन बैच


ग्रीन बैच के फायदे अभी भले ही नजर नहीं आ रहे लेकिन हिमाचल प्रदेश के पर्यावरणीय हितों की रक्षा के लिए यह बहुत उपयोगी साबित होगी। किसी भी तरह के पर्यावरण की अनदेखी, नियमों के उल्लंघन के मामलों की इसी बैंच में सुनवाई होने से मामलों में शीघ्र परिणाम मिल सकेंगे।


रूबी जुबली से परिवार की फीलिंग


हिमाचल हाइकोर्ट की स्थापना के चालीस वर्ष पूर्ण होने पर शुरू किए गए रूबी जुबली समारोह के संदर्भ में उनका कहना है चाहे हाई कोर्ट का स्थापना दिवस हो या इस तरह के कार्यक्रम इनमें स्टाफ से लेकर लायर्स, मुंशी, आम लोगों की भागीदारी होने से वर्क कल्चर तो सुधरता ही है, परिवार की फीलिंग भी आती है। वैसे भी उत्सव बिना तो जीवन ही बेकार है। जिलों में कोर्ट कार्यों में तेजी के लिए स्वयं मैंने जिला कोर्ट में सुनवाई शुरू की है। सोलन के बाद अब अगला कैंप बिलासपुर में होगा।


लीगल अवेयरनेस की कमी


दक्षिण के राज्यों की अपेक्षा हिमाचल में लीगल अवेयरनेस काफी कम है। इसका एक प्रमुख कारण लीगल लिट्रेसी की कमी होना भी है। लीगल लिट्रेसी की क्लासेस के साथ ही स्कूली बच्चों को कानून की प्राथमिक जानकारी से अवगत कराने के लिए प्रशासन के साथ मिलकर कार्यक्रम चलाने की भी प्लाङ्क्षनग है।


हाईकोर्ट में मीडिया रूम की स्थापना के बाद अब शीघ्र ही एक जनसंपर्क अधिकारी भी पदस्थ किया जा रहा है। इसके पीछे उद्देश्य यही है कि मीडिया की कोर्ट संबंधी वर्किंग को आसान बनाया जा सके। अभी कई मामलों में जो कोर्ट की अवमानना, कोर्ट में सुनाए गए जनहित के किसी फैसले की रिपोर्टिंग को लेकर जो पशोपेश की स्थिति बनती रहती है ऐसे सारे हालात में हाईकोर्ट पीआरओ सेतु का काम करेगा। इसी के साथ हाईकोर्ट में सत्कार अधिकारी का पद भी का पद भी सृजित किया जा रहा है।


हिमाचल हर मामले में टॉप पर रहे मुख्य न्यायाधीश जोसेफ को हिमाचल का प्राकृतिक, नैसॢगक सौंदर्य बहुत अच्छा लगता है। इस प्रदेश के लोगों के संदर्भ में उनका कहना है यहां के लोग आनेस्ट, सिंसियर और स्टेट फारवर्ड और साफ दिल के हैं। सीजे कुरियन की दिली तमन्ना है कि न सिर्फ शीघ्र न्याय बल्कि हर क्षेत्र में हिमाचल हिमालय की तरह टॉप पर रहे।


(चीफ जस्टिस के साथ इस लंबी बातचीत में भास्कर के सहयोगी वरिष्ठ एडवोकेट अजय वैद्य का भी सहयोग रहा।)