सोमवार, 26 जुलाई 2010

आरटीआई बन रहा है बेसहारों का सहारा

आयोग
लोगों की शिकायत का निवारण नहीं कर सकता है मगर मामले की संबंधित सूचना निर्णायक साबित हो सकती है।

प्रेम सिंह राणा, राज्य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त
हिमाचल प्रदेश राज्य सूचना आयोग के मुख्य सूचना आयुक्त प्रेम सिंह राणा भारतीय प्रशासनिक सेवा के 1970 कॉडर के अधिकारी रह चुके हैं। सेवानिवृत्ति के बाद प्रदेश सरकार ने उन्हेंं मार्र्च 2006 में आयोग के आयुक्त पद का दायित्व सौंपा। वे मानते हैं कि उनके सेवाकाल के दौरान आधारभूत ढ़ाचा (खासतौर पर सड़क) और पॉवर क्षेत्र में फोकस करने की प्राथमिकताएं थीं और कमोवेश आज भी राज्य की वहीं प्राथमिकताएं हैं। 1995 में पहली बार विश्व बैंक की सहायता प्राप्त करने के लिए 10 सड़कों का प्रोजेक्ट केंद्र को भेजा गया था। आधारभूत ढ़ाचागत क्षेत्र विकसित होने से अर्थव्यवस्था में सुधार आएगा और लोगों की आर्थिकी के लिए कई तरह के विकल्प खुलेंगे। ऊर्जा क्षेत्र में जितना हो सके सरकार को निवेश करना चाहिए। कुल मिलाकर सरकार के लिए सड़क व ऊर्जा क्षेत्र फोकस एरिया होने चाहिए।
आयोग आयुक्त राणा का कहना है कि आयोग लोगों की शिकायत का निवारण नहीं कर सकता है मगर मामले की संबंधित सूचना निर्णायक साबित हो सकती है। लोगों को भ्रम रहता है कि समस्या का समाधान आयोग करेगा, ऐसा नहीं है। सूचना के लिए आवेदन में ध्यान देना चाहिए कि दस्तावेज में मौजूद रिकॉर्ड मांगा जाए। फाइल या दस्तावेज में ऐसा क्यों लिखा गया है इसका जवाब नहीं दिया जा सकता है। केवल जो दर्ज है उसकी प्रति ही दी जा सकती है।
छह मामलों में हाईकोर्ट में याचिका
आयोग के फैसले के खिलाफ 6 मामलों में अपील दायर हुई। एक मामले में राज्य लोक सेवा आयोग की ओर से जेएन शर्मा का मामला न्यायालय पहुंचा। राज्य सचिवालय ने सुरेंद्र सिंह मनकोटिया मामले व गृह विभाग ने संजय गुप्ता व पीके आदित्य मामले में आयोग के निर्णय को प्रदेश उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। नगर निगम से जुड़े दो मामलों में सेवानिवृत्त न्यायाधीश एमआर वर्मा ने आयोग के निर्णय के खिलाफ याचिका दायर की है।
आयोग पर कर्मचारियों की बढ़ती निर्भरता
सरकारी कर्मचारियों के आवेदन अधिकाधिक संख्या में आते हैं। विभाग में दूसरे कर्मचारियों के वेतन व प्रमोशन से जुड़े ऐसे मामलों में सूचना प्राप्त की जाती है। अपनी वेतन विसंगतियों को दूर करने के लिए इस प्रकार की सूचनाओं की मदद ली जा रही है। आरटीआई आने से पहले राजस्व से जुड़ी जानकारी लेना सबसे मुश्किल काम होता था मगर इस कानून के आने के बाद कानूनी झगड़ों को निपटाने में सहायता मिली है। सरकारी रिकॉर्ड की सूचना लेने के लिए आवेदन आ रहे हैं।
कैसे प्राप्त कर सकते हैं सूचना
सादे कागज पर संबंधित विषय को लेेकर सूचना मांगी जा सकती है। प्रार्थी को हक है कि वह विभाग में जन सूचना अधिकारी के समक्ष आवेदन कर सकता है। सूचना नहीं मिलने पर उससे उपर के अधिकारी के पास अपील करने का अधिकार प्रार्थी के पास है। यदि प्रार्थी चाहे तो सीधे आयोग में भी सूचना के लिए आवेदन कर सकता है।
जागरूक हैं प्रदेश के लोग
राणा का कहना है कि प्रदेश के लोगों के जागरूक होने का पता इस बात से चल जाता है कि मात्र चार साल के भीतर सूचना के लिए प्राप्त हुए आवेदनों की संख्या चार गुणा हो गई है। 2006-07 के दौरान पहले साल 2654 आवेदन आए थे। 2007-08 में 10105, 2008-09 में 17869 व 2009-10 में 25000 आवेदन और इस साल आवेदनों की संख्या 35 हजार का आंकड़ा पार कर सकती है। ऐसा आकलन है कि विभिन्न कारणों से पहले साल 5 फीसदी आवेदन हुए और साल दर साल इसमें कमी आती गई। 2007-2008 में तीन और 2009-2010 मेें दो फीसदी रह गए हैं। निचले स्तर पर सूचना देने का प्रतिशत 98 फीसदी रहा है। आयोग के स्तर पर फिलहाल कोई मामला लंबित नहीं पड़ा है।
...सरकारी योजनाओं की सूचना मांग रहे है
व्यक्तिगत सूचना लेने के अलावा अब ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार की विकास योजनाओं को लेकर भी सूचना के लिए ओवदन आते हैं। मनरेगा में कितना पैसा खर्च किया गया और कामगारों के वेतन की जानकारी प्राप्त हो रही है। कुछ समय पहले पीटीए की नियुक्तियों से जुड़ी सूचना बड़े पैमाने पर मांगी गई। इसी तरह से ग्रामीण विकास, लोक निर्माण, सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य, वन व पुलिस विभाग से सूचनाएं प्राप्त की जा रही हैं। आंगनबाडी महिला कार्यकत्र्ताओं ने भी सरकार के नियमों को लेकर सूचना के लिए आवेदन किया। सड़कों के निर्माण में लगे ठेकेदारों के कामकाज को लेकर सूचनाएं लेने से निर्माण में भी अपेक्षाकृत सुधार आया है।
पंचायत सचिव को हुआ था पहला जुर्माना
समय पर सूचना नहीं देने के एक मामले में 2008=09 के दौरान कांगड़ा जिले के पंचायत सचिव पर 250 रुपए का जुर्माना किया गया। आरटीआई कानून लागू होने पर पहलेे साल आयोग ने किसी पर जुर्माना नहीं लगाया था। सूचना देने में देरी करने पर 250 रुपए प्रति दिन के हिसाब से अधिकतम 100 दिन तक 25 हजार का जुर्माना करने का प्रावधान है। निर्धारित 30 दिन की अवधि के भीतर जानबूझकर गलत जानकारी देने या फिर नहीं देने की स्थिति में ही जुर्माना लगाया जा सकता है।
सेवाकाल में सड़कों को दी प्राथमिकता
सेवाकाल के दौरान आधारभूत ढ़ाचा (खासतौर पर सड़क) और पॉवर क्षेत्र में फोकस करने की प्राथमिकताएं थीं
1995 में पहली बार विश्व बैंक की सहायता प्राप्त करने के लिए 10 सड़कों का प्रोजेक्ट केंद्र को भेजा गया था।
सड़कों के निर्माण में लगे ठेकेदारों के कामकाज को लेकर सूचनाएं लेने से निर्माण में भी अपेक्षाकृत सुधार आया है।

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