सोमवार, 19 जुलाई 2010

चाह कर भी माल रोड पर घूमने नहीं जा पातीं राज्यपाल



  • आत्मकथा पढऩे की फुर्सत किसे है, अच्छा हो कि हम आत्मचिंतन करें कि पावर में रहते लोगों का कितना भला किया

जब व्यक्ति वीवीआईपी की श्रेणी में आ जाए तो वह छोटी छोटी इच्छाओं को पूरा न कर पाने पर कैसे मन मसोस कर रह जाता है इसे हर हाइनेस उर्मिला सिंह की इस कसक से समझा जा सकता है कि वह चाहते हुए भी माल रोड पर आम जन की तरह नहीं घूम सकती। वे ठान लें तो प्रशासन को माल रोड पर उनकी पैदल यात्रा के लिए सारे इंतजाम पलक झपकते करना भी पड़े लेकिन वे नहीं चाहती कि सैलानी अनावश्यक परेशान हों। ईश्वर के प्रति आस्थावान हैं लेकिन रोज या प्रति मंगलवार संकटमोचन या जाखू स्थित प्राचीनतम हनुमान मंदिर दर्शन करने भी नहीं जा सकती। कारण वही कि आस्था के साथ दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालु वीआईपी व्यवस्थाओं के कारण परेशान न हों, इसलिए राजभवन के गार्डन में ही एक स्थान पर मंदिर में हनुमान जी की स्थापना कर दी है। यही दर्शन पूजा कर लेती हैं। उनक ी इस सहजता वाले संस्कार को उनके पुत्र ने भी अपना लिया है। शिमला में कहीं आना-जाना भी हो तो योगेंद्र (बाबा) और उनकी पत्नी प्रीति बिना पहचान के ही आते जाते हैं। हिमाचल के संदर्भ में राज्यपाल कहतीं हैं इस प्रदेश की देश-विदेश में देवभूमि के रूप में पहचान है लेकिन मंदिरों का महत्व, उनका संरक्षण बेहतर नजर नहीं आता। मेरा सुझाव है सरकार इस देवभूमि के सम्मान की वृद्धि के बारे में और गंभीरता दिखाए। टूरिज्म में करना चाहे तो बहुत कुछ किया जा सकता है। नारकंडा के हाटकोटी, सांगला वैली तो स्वर्ग समान हैं, निजी क्षेत्र को हट बनाने के लिए क्यों सौपा मुझे तो समझ आता नहीं इसे तो खुद सरकार बेहतर तरीके से विकसित कर सकती है। कुल्लू मनाली से ज्यादा खूबसूरत हैं ये क्षेत्र। लंबे राजनीतिक करिअर, राजीव एवं सोनिया गांधी सहित उस दौर के अन्य शीर्षस्थ नेताओं से नजदीकी के बावजूद उनका अभी न भविष्य में आत्मकथा लिखने का कोई इरादा है। उनका कहना था अब आत्मकथा पढऩे की फुर्सत किसे है? आत्म कथा लिखने से तो अच्छा यह है कि व्यक्ति एक उम्र के बाद यह चिंतन जरूर करे कि ईश्वर की कृपा से उसे जो मानव जीवन मिला तो उसने पूरी जिंदगी में लोगोंं की भलाई के कितने काम किए।

शाकाहारी हूं, सोच अच्छा तो मन अच्छा

सादा जीवन, शाकाहारी भोजन तथा वैचारिक शुद्धता में विश्वास करने वाली राज्यपाल ईश्वर में गहरी आस्था रखती हैं। दिखावा पसंद नहीं, राजभवन जिस जगह स्थित है वहां वातावरण में ठंडक कुछ ज्यादा रहती है। राजभवन के सभी कमरों का तापमान गर्म रखने की आधुनिक व्यवस्था भी है लेकिन उन्हें यह इंतजाम रास नहीं आते, इनक ा आदी होने की अपेक्षा वे शाल ओढऩा ज्यादा पसंद करती है। साथ में यह भी कहती हैं कि रहो इस तरह की बाद में कभी अफसोस ना हो। चाहे बड़े पद वाला आदमी हो या छोटा आदमी, सब कु छ उसके सोच पर डिपेंड करता है। यदि सोच अच्छी है तो आदमी हर हाल में खुश रहेगा। मन अच्छा रहेगा तो उसके मन में किसी के प्रति बुरी सोच आएगी ही नहीं।

शिमला में नजर आए पूरे हिमाचल का कल्चर

शिमला को और कै से आकर्षक बनाया जा सकता है इस संबंध में भास्कर के साथ अपना वीजन शेयर करते हुए उन्होंने कहा कि हिमाचल 12 महीनों टूरिस्ट के लिए एप्रोचेबल नहीं है लेकिन शिमला आने-जाने में टूरिस्ट के लिए ऐसी कोई समस्या नहीं है। इसका लाभ लिया जा सकता है, प्रदेश के 12 जिलों क ा जो कल्चर है उसे शिमला में किसी एक जगह डिसप्ले किया जा सकता है। उन क्षेत्रों के हस्त और काष्ठ शिल्प के लिए बाजार विकसित किया जा सकता है। इससे उस इलाके के पारंपरिक काम को संरक्षण के साथ उन लोगों को बाजार तथा शिमला आने वाले सैलानियों को पूरा हिमाचल एक छत के नीचे देखने समझने का अवसर मिलेगा।

बुजुर्गों के लिए बैटरी वाली गाड़ी चलानी चाहिए

शिमला के उतार चढ़ाव वाले रास्तों के कारण अन्य शहरों से आने वाले बुजुर्ग सैलानियों को होने वाली परेशानी से राज्यपाल का मन व्यथित होता है। नगर निगम की महापौर मधु सूद को उन्होंने सुझाव भी दिया था कि बैटरी चलित गाडिय़ा न्यूनतम शुल्क लेकर चलाई जा सकती हैं। इससे बुजुर्गों को आवागमन में सुविधा मिलेगी साथ ही पर्यावरण भी प्रभावित नहीं होगा। इसी तरह उन्होंने लोअर शिमला को जोडऩे वाली सीढिय़ों के साथ ही कुछ जगह एस्केलेटर लगाने का सुझाव भी दिया था। इन स्वचलित सीढिय़ों से लोगों को आवाजाही में राहत मिल सकती है। अभी लोग सीढिय़ों से नीचे तो उतर जाते हैं लेकिन ऊपर आने के लिए लंबा चक्कर लगा कर पैदल आते हैं।

लड़कियों क ी एजूकेशन के मामले में अच्छी स्थिति

हिमाचल की महिलाओं के प्रति राज्यपाल के मन में काफी सम्मान है इसका कारण बताते हुए वे कहतीं हैं इस पहाड़ी प्रदेश की महिलाए बढ़ी मेहनती हैं, इसीलिए मैं इस प्रदेश को 'देवी भूमिÓ भी मानती हूं। लड़कियों के एजुके शन के मामले में वे सरकार के काम से संतुष्ट तो नजर आईं लेकिन यह भी कहा कि थोड़ी कसावट की जरूरत है। अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन के दिनों को याद करते हुए उन्होंने कहा मैं जब राजनीति में आई तब एक ही जुनून था मुझे पिछड़े, दलित, आदिवासी समाज के लिए कुछ करना है। ट्राइबल डिपार्टमेंट जब मिला तब बालिका शिक्षा के लिए खूब काम किया इसलिए कहा है कि लड़कियों के एजूकेशन के मामले में यहां और कसावट की जरूरत है।

...तब चूल्हा चोका भी संभालना पड़ता था

पति वीरेंद्र बहादुर सिंह 'पूर्व विधायकÓ के निधन के बाद विधायक क ा चुनाव लडऩे को वे उस समय की राजनीति और महिलाओं के लिए ज्यादा अवसर न होने की याद करते हुए कहती हैं तब चुनाव लडऩे के साथ चौका चूल्हा भी संभालना पड़ता था। जब पंचायत से लेकर नगर निगम तक महिलाओं के लिए पद आरक्षित किए जाने संबंधी संविधान संशोधन हुए, चुनावों में महिलाओं के लिए टिकट वितरण में विभिन्न वर्गों में संख्या आरक्षित की जाने लगी तब से महिलाओं की न सिर्फ राजनीति में भागीदारी बढ़ी है वरन उन्हें बराबरी का दर्जा भी मिला है। इसका काफी कुछ श्रेय तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को जाता है। सिवनी जिले में लखनादौन से 1985 में विधायक पद के लिए पहला चुनाव लड़ा। तब कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार करने आए राजीव गांधी ने कहा था सिवनी जिले के पांच में से तीन सीटों पर महिलाओंं को टिकट दिया है। ये तीनों लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती हैं।

मप्र मंत्रिमंडल में लगातार 10 वर्ष मंत्री की हैसियत से वित्त, डेरी, आदिवासी, समाज कल्याण आदि मंत्रालय संभाले। मप्र प्रदेश कांग्रेस की अध्यक्ष, अभा कांग्रेस कार्य समिति एवं अनुशासन समिति की सदस्य के साथ ही ट्राइबल नेशनल कमीशन की अध्यक्ष सहित राज्य सरकार के विभिन्न निगमों की अध्यक्ष भी रहीं। 6 अगस्त 1946 को फिंगेश्वर, रायपुर छत्तीसगढ़ में जन्मी उर्मिला सिंह क े दो पुत्र योगेंद्र सिंह, धर्मेंद्र सिंह तथा एक पुत्री रचना सिंह हैं। नाती-पोते वालीं हर हाइनेस राजभवन में अपने बड़े बेटे योगेंद्र (बाबा) सिंह और बहु प्रीति क े साथ रह रही हैं।

मध्यप्रदेश और हिमाचल का रिश्ता। इस संवैधानिक पद का मध्य प्रदेश से भी जुड़ाव रहा है। जब हिमाचल में राष्ट्रपति शासन था उस वक्त बैरिस्टर गुलशेर अहमद 30 जून से 26 नवंबर 93 राज्यपाल रहे। बाद में न्यायमूर्ति विष्णु सदाशिव कोकजे 8 जुलाई 2003 से 19 जुलाई 2008 तक रहे और अब उर्मिला सिंह राज्यपाल हैं। ये सभी मध्यप्रदेश से हैं।

झूठी तारीफ पसंद नहीं, अचार, मुरब्बे का शौक

आम धारणा है कि महिलाओं में अपनी तारीफ सुनने कि आदत होती है और झूठी तारीफ करके उनसे अपने मन का कार्य भी आसानी से कराया जा सकता है। राज्यपाल उर्मिला सिंह उन महिलाओं में से हैं जिन पर झूठी तारीफ का असर तो होता नहीं उल्टे वह यह भी भांप लेती है कि तारीफ करने वाला कि तनी बात सच्ची कह रहा है। हां आम गृहिणी की तरह उन्हें भी अचार, मुरब्बे का शौक है। खुद बनाए भले ही नहीं लेकिन राजभवन के खानसामा को हिदायत देने किचन में पहुंच जाती हैं और अपने स्वाद अनुसार मसाले डलवाती हैं। अचार बनवाना हो तो मसाले के संबंध में निर्देश देते जाती हैं। फिल्म देखे तो वर्षों हो गए, हां धार्मिक चैनलों पर क था प्रवचन जरूर सुन लेती हैं।

हिमाचल की 21वीं राज्यपाल

25 जनवरी 10 को उर्मिला सिंह को हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल मनोनीत किया गया। वे हिमाचल की 21वीं राज्यपाल हैं। इस राज्य के पहले राज्यपाल एस चक्र वर्ती (आइसीएस) थे, वे सन् 71 से 77 तक इस पद पर रहे। जहां तक किसी महिला को यह पद सौंपे जाने की बात है तो वे इस पद की गरिमा बढ़ाने वाली चौथी महिला हैं।

उनसे पहले प्रभा राव 17 नवंबर 95 से 25 जनवरी 10 तक, वीएस रमादेवी 26 जुलाई 1997 से 1 दिसंबर 99 तक तथा हिमाचल की पहली महिला राज्यपाल के रूप में शीला कौल 17 नवंबर 95 से 22 अप्रैल 1996 तक इस पद पर रही हैं।

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