सोमवार, 30 अगस्त 2010

अपना वीजन डॉक्यूमेंट बना रहा है एचपीयू

यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर हिमाचल के गांवों पर शोध कर रहा स्वीडन नेट की एग्जाम पास करने वाले वाले स्टूडेंट के मामले में एचपीयू का दूसरा नंबर
-कीर्ति राणा. शिमला
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के साथ मिलकर स्वीडन की उपसला यूनिवर्सिटी हिमाचल के ऐतिहासिक गांव मलाना और दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में बसे आदिवासियों की भाषा तथा उनके द्वारा रोजमर्रा के जीवन में उपयोग में लाई जाने वाली जड़ी—बूटियों पर शोध किया जा रहा है। इस शोध के परिणामों से हिमाचल को तो विश्व स्तर पर ख्याति मिलेगी ही प्रदेश के सांस्कृतिक विकास में हिमाचल प्रदेश विवि की भागीदारी भी रेखांकित की जाएगी। मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल की सलाह पर विवि ने वीजन डॉक्यूमेंट पर भी काम शुरू कर दिया है। इस डॉक्यूमेंट में विवि के विस्तार, भविष्य की योजनाओं, जरूरतों पर फोकस रहेगा।
भास्कर से मंडे मुलाकात में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुनील कुमार गुप्ता ने विश्वविद्यालय और उससे संबद्ध कालेजों में छात्रसंघ चुनाव शांति से निपट जाने पर राहत की सांस ली है। उन्होंने माना शुरुआत में झगड़े फसाद हुए लेकिन बाद में छात्र संगठनों और विवि प्रशासन में संवाद और विश्वास कायम होने पर स्थिति संभल गई। उन्होंने प्रशासन के सहयोग की भी सराहना की। कुलपति ने कहा कि अक्टूबर तक स्टूडेंट कौंसिल के चुनाव भी करा लेंगे। विवि में टीचिंग, नान टीचिंग स्टाफ के रिक्त पदों को भरे जाने की प्रक्रिया भी सितंबर से शुरू हो रही है।
स्वीडन के साथ मिल कर किए जा रहे दोनों शोध तीन वर्ष में पूरे हो जाएंगे। इस शोध से शताब्दियों पुराने मलाना गांव की सभ्यता, संस्कृति, उसके ऐतिहासिक महत्व संबंधी प्रामाणिक तथ्य सामने आएंगे। इसी तरह आदिवासी अंचलों में बोली जाने वाली भाषा और स्पेनिश लेंग्वेज में समानता, जड़ीबूटियों के उपयोग आदि से इन तथ्यों का खुलासा होगा कि हिमाचल की सांस्कृतिक विरासत कितनी पुरानी है तथा अन्य देशों से यह किस तरह मिलती जुलती है।
देश के 504 विश्वविद्यालयों के संदर्भ में एक पत्रिका द्वारा कराए गए सर्वे में न सिर्फ हिमाचल विवि को 31वीं रैंक मिली है। वरन एकेडमिक, फैकल्टी, रिसर्च, इंफ्रास्ट्रक्चर आदि सभी श्रेणियों में 31वीं रैंक है। यूजीसी की ओर प्रतिवर्ष आयोजित की जाने वाली नेट एग्जाम में तीन साल पहले एचपीयू चौथे, फिर तीसरे और अब नेट की एग्जाम पास करने वाले छात्रों की संख्या के मामले में हिमाचल देश में दूसरे क्रम पर है। यूजीसी के जो 12 सेंटर पूरे देश में हैं उनमें से एक सेंटर फ ार एक्सीलेंस तो हमारे यहां है ही अब सेंटर फॉर पोटेंशियल एक्सीलेंस के लिए भी यूजीसी से अनुरोध किया है। यह सेंटर भी मिलना तय है।
समय पर रिज्लट घोषित करने संबंधी घोषणा पूरी न क र पाने को स्वीकारने के साथ ही कुलपति ने कारण गिनाते हुए कहा कि कंप्यूटरों की कमी, कापियां जांचने के लिए निर्धारित नियमों का टीचर्स की ओर से पूर्णतया पालन नहीं करना, कालेजों ने अवार्ड भेजे तो सही लेकिन उनमें गलतियां छोडऩा, टेक्निकल स्टाफ को समय रहते प्रशिक्षण न दे पाना जैसे कारण रहे। इन सारी कमियों से सबक भी मिला। अब समय पर रिजल्ट घोषित करने के लिए एग्जाम कैलेंडर तैयार कर लिया है। साथ ही ऐसी खामियां फिर से न होगी यह विश्वास है।

चाहे जितने निजी विवि आ जाएं एचपीयू को कोई फर्क नहीं पड़ता

प्रदेश में निजी यूनिवर्सिटी को सरकार द्वारा धड़ाधड़ दी जा रही अनुमति जैसे प्रश्न को नो कमेंट कह कर टालने में तत्परता दिखाने वाले हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुनील कुमार गुप्ता आत्मविश्वास के साथ कहते हैं, ऐसी यूनिवर्सिटियां चाहे जितनी खुल जाएं हमें कोई फर्क नहीं पड़ता। 40 वर्ष पूर्व स्थापित इस विश्वविद्यालय का कालाकल्प बीते तीन वर्ष में ही तेजी से हुआ है। यह दावा करने वाले प्रो. गुप्ता बजट में वृद्धि, नए कोर्स, भवन निर्माण आदि कारण भी गिनाते हैं। वे बिना लागलपेट के स्वीकारते हैं कि यदि छात्र चंडीगढ़, दिल्ली बैंगलुरु जाना पसंद कर रहे हैं तो इसका कारण कॉलेजों में छात्रों को बहुमुखी विकास के लिए मंच उपलब्ध नहीं कराना है। निजी कॉलेजों में मनमानी फीस सहित अन्य धांधलियों पर रोक के लिए मॉनिटिरिंग कमेटी का गठन सही कदम बताते हैं।
-प्रो. सुनील कुमार गुप्ता, कुलपति हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सुनील कुमार गुप्ता का दावा है कि प्रदेश में चाहे जितनी प्राइवेट यूनिवर्सिटी आ जाएं हमारे विश्वविद्यालय की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। क्योंकि हमारे विवि के प्रति जो विश्वास है शैक्षणिक गुणवत्ता और सस्ती सुलभ शिक्षा है उसका निजी विश्वविद्यालय मुकाबला नहीं कर सकते। मंडे मुलाकात के दौरान जब कुलपति से पूछा गया कि देश में हिमाचल ऐसा राज्य है जहां सर्वाधिक निजी विश्वविद्याालय है। आखिल ऐसा क्या है हिमाचल में ? लगभग सारे ही छात्र संगठन प्राइवेट यूनिवर्सिटी की बढ़ती संख्या को शिक्षा का निजीकरण बताकर विरोध भी कर रहे हैं।
आप कारण बताएंगे ऐसा क्यों हो रहा है?
निजी विवि को अनुमति और शिक्षा के निजीकरण के संबंध में बार-बार कुरेदे जाने के बाद भी कुलपति ने नो कमेंट से ज्यादा कुछ नहीं कहा। लेकिन यह जरूर कहा कि इन विवि की ओर छात्र तभी रुख
करते हैं जब हमारे विवि और सेंट्रल यूनिवर्सिटी या संबंद्ध कालेजों में एडमिशन नहीं मिल पाता। हमारे यहां सबसे अधिक राहत की बात है फी स्ट्रक्चर कम होना। हालात यह है कि 60 सीट के लिए 6 हजार तक आवेदन आते हैं। चाहे जितनी यूनिवर्सिटी आ जाएं हम आगे हैं और आगे ही बढ़ते रहेंगे।
ऐसे तमाम दावों के बाद भी यहां के स्टूडेंट चंडीगढ़, दिल्ली, बैंगलुरू की ओर क्यों रुख करते हैं?
मुझे जो इस मामले में सबसे बड़ी कमी नजर आती है बच्चों को सभी क्षेत्रों में कॉलेजों में पर्याप्त एक्सपोजर नहीं मिलता। वो भले ही 95 फीसदी मार्क लाने वाला ही क्यों न हो, कल्चरल स्पोट्र्स एक्टिविटी, उसे बोलने की क्षमता के विकास का मंच भी उपलब्ध कराना जरूरी है। मुझे कॉलेजों में यह कमी नजर आती है, विवि स्तर पर तो छात्रों को मंच उपलब्ध करा रहे हैं।
क्या ऐसे छात्रों को विवि अतिरिक्त प्रोत्साहन दे रहा है?
हां, फीस माफी, स्कॉलरशिप भत्ते में वृद्धि के साथ ही उन्हें नकद राशि से पुरस्कृत किए जाने पर भी विचार किया जा रहा है। उन छात्रों को यह राशि दी जाएगी जो हिमाचल विवि का विभिन्न क्षेत्रों में देश में मान बढ़ाएंगे।
दीक्षांत समारोह की स्थिति क्या है?
विवि स्थापना के चालीस वर्षों में कुल 17 समारोह हुए हैं जिनमें 16वां, 17वां मेरे कार्यकाल में हुआ अब 18 वां नवंबर में करवाएंगे जिसमें इसी साल पढ़ाई पूरी कर चुके छात्र शामिल होंगे।
विवि में प्लेसमेंट की स्थिति क्या है?
आईटी सहित अन्य प्रोफेशनल कोर्सेस में शत प्रतिशत प्लेसमेंट की स्थिति है। विभिन्न विभागों में विभागीय स्तर पर प्लेसमेंट ऑफिसर के रूप में ऐसे सक्षम व्यक्ति की नियुक्ति कर रहे हैं जिसकी देश की प्रमुख कंपनियों से सीधे ताल्लुकात हों।
फिर भी विवि से संबद्ध होस्टलों की हालत तो गई गुजरी है, कमरों व टॉयलेट की स्थिति जर्जर है।
जी नहीं, इन दो वर्षों में छात्रावासों की हालत बदल गई है। आर्टस, लॉ, आदि के छात्रावासों की मरम्मत, रंगरोगन, टॉयलेट निर्माण कराया गया है।
पीने के पानी का संकट कहां दूर हुआ?
यह भी सही नहीं है। पिछले 38 वर्षों में वीसी कार्यालय सहित कहीं भी एक्वागार्ड तक नहीं थे। मेरे आफिस तक में नहीं था, अब सब जगह यह सुविधा है।
स्टाफ क्वॉर्टर का संकट दूर हुआ क्या, कुछ बजट भी बढ़ा या नहीं?
टीचिंग स्टाफ के लिए दो टीचर्स क्वॉर्टर के साथ ही नॉन टीचिंग स्टाफ आवास के लिए भी राज्य सरकार से एक करोड़ रुपया लिया है। यूूजीसी से भी मदद मिल रही है। जहां तक वीवी बजट का सवाल है तो दो वर्ष पहले तक 30 करोड़ था अब यह बजट 50 करोड़ किया गया है। जिस दिन सरकार अपने कर्मचारियों को डीए आदि लाभ की घोषणा करती है उसके दूसरे दिन विवि में भी जारी कर देते हैं।
रिक्त पदों के कारण भी तो संकट है, कुल कितने पदों को भरा जाना है?
टीचिंग स्टाफ में 182 पद रिक्त हैं इनमें से करीब 35 पदों को पहले भरा जाना है, 19 सितंबर से रिक्रूटमेंट शुरु करेंगे। खाली पदों के कारण फिलहाल 36 गेस्ट फेकल्टी का सहयोग ले रहे हैं। नॉन टीचिंग में 23 पद भरे जाने हैं इनके लिए विज्ञापन जारी कर दिया गया है।
ऐसा लगता है कि विवि का काम कंस्ट्रक्शन करवाना हो गया है, जहां देखो वहीं धड़ल्ले से भवन निर्माण जारी है?
हमारा काम तो एजुकेशन देना ही है लेकिन मेरा यह मानना है कि कोई भी नया कोर्स बिना भवन, संसाधन के अभाव में शुरु करना ठीक नहीं। ऐसा करने लगे तो आप सब मीडिया वाले ही कहेंगे फीस वसूली के बाद भी सुविधा नहीं दी जा रही। जो कंस्ट्रक्शन चल रहा है आवश्यक स्वीकृति और नए कोर्सों के लिए भवनों की जरूरत के मुताबिक ही चल रहा है। अभी शेड्स में चल रहे ज्योग्राफी, जर्नलिज्म, भोटी डिपार्टमेंट के लिए साथ ही एमबीए और टूरिज्म की नई बिल्डिंग का काम जारी है। एग्जामिनेशन डिपार्टमेंट के लिए पृथक से भवन निर्माण किया जा चुका है।
विवि का फोकस किस तरह के कोर्स पर रहता है?
गत 10 वर्षों में जितने भी विभाग खुले हैं, उन सब की यह डिमांड रही है कि विवि ऐसे कोर्स संचालित करे जो छात्रों को रोजगार भी उपलब्ध कराए। हमने एमबीए, बीबीए, बीसीए शुरू करने के साथ लॉ में पांच वर्षीय कोर्स शुरु किया है। आईटी बिल्डिंग इस वर्ष अंत तक पूर्ण हो जाएगी तब इंजीनियरिंग की दो ब्रांचें सिविल और मेकेनिकल अगले सत्र से शुरू कर देंगे। बीटेक (बायोटेक) के लिए सरकार ने एक करोड़ रुपया उपलब्ध कराया है। यह कोर्स भी अगले सत्र से शुरू कर देंगे।
निजी कॉलेजों द्वारा वसूली जा रही मनमानी फीस सहित अन्य अनियमितताओं पर अंकुश लगाने में सख्ती नजर
नहीं आती।
प्रावइेट कॉलेजों की मानिटरिंग के लिए तीन सदस्यीय समिति बनाई है। यह समिति इन कॉलेजों का आकस्मिक अवलोकन करेगी। पाई जाने वाली कमियां दो माह में दूर करने की मोहलत देंगे। प्रथम तीन माह में कमियां दूर न की तो 50 हजार रुपए जुर्माना किया जाएगा, छह माह में भी कमियां दूर नहीं की, निर्धारित से अधिक फीस वसूली की शिकायत सही पाई गई तो कॉलेज की संबंद्धता खत्म कर देंगे। बिना पर्याप्त टीचर, सुविधाएं और भवन के अभाव में कालेज का संचालन अब संभव नहीं। बीएड की फीस रुपए 39 हजार 500 लेकिन निजी कालेज 50 हजार तक फीस ले रहे हैं। कमेटी को इस तरह की मनमानी वाली शिकायतें सप्रमाण कर सकते हैं।
रीजनल सेंटर धर्मशाला में भी तो पद रिक्त हैं फिर निजी कॉलेजों पर कार्रवाई क्यों?
हमारे यहां जो पद रिक्त हैं वहां गेस्ट फेकल्टी से सहयोग ले रहे हैं। असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पहले भर रहे हैं इससे पीजी, धर्मशाला और इवनिंग कॉलेज में प्रोफेसर का संकट समाप्त हो जाएगा।
बजट के अलावा अन्य योजनाओं में भी पैसा मिला है।
इन दो वर्षों में मैथेमेटिक्स, फिजिक्स, केमेस्ट्री डिपार्टमेंट में सेप लागू किया है। इस मद में प्रति डिपार्टमेंट यूजीसी से एक करोड़ रुपए की ग्रांट मिली है। चार अन्य डिपार्टमेंट लॉ, कामर्स, पोलिटिकल साइंस और बायोटेक में सेप प्रस्तावित है। साईंस रिसर्च के लिए दिल्ली, चंडीगढ़ जाने वाले छात्रों के लिए यूसिका को स्थापित किया है। 4 करोड़ की लागत से स्थापित इन मशीनों के बाद फिजिक्स, केमेस्ट्री के रिसर्च स्कालर की समस्या दूर हुई है। मानव संसाधन मंत्रालय ने इंटरनेट संबंधी सुविधाओं के विस्तार के लिए ढाई करोड़ रुपया दिया है। हम होस्टल तक छात्रों को वाईफाई सुविधा देने वाले हैं।
विश्वविद्यालय को प्रोस्पेक्टस और स्टडी मेटेरियल में सुधार की भी चिंता है या नहीं?
हमारी कोशिश है कि सारे प्रोस्पेक्टस ऑनलाइन कर दिए जाएं और करस्पांडेंस भी आनलाइन हो। एमटेक के प्रोस्पेक्टस को ऑनलाइन करने के साथ शुरूआत कर दी है जितने करस्पांडेंस कोर्स हैं उसका स्टडी मेटेरियल भी ऑन लाइन करना चाहते हैं। जिस दिन छात्र करस्पांडेंस कोर्स के लिए अप्लाय करें उसे एडमिशन के साथ स्टडी मेटेरियल भी उपलब्ध हो जाए। विवि के दिल्ली में नोएडा स्थित सेंटर पर इस सुविधा को शुरू कर दिया है।
विश्वविद्यालय तब से अब तक
चालीस साल पहले 22 जुलाई 1970 को गठन हुआ हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय तब केवल 8 विभाग थे अब 12 फैक्लटीज है, इनमें से 9 तो विवि में ही है अन्य तीन विवि के बाहर एक रीजनल सेंटर धर्मशाला में, एक इवनिंग कॉलेज शिमला में इसके साथ बिजनेस स्टडीज, लीगल स्टडीज, इंफरमेशन टेक्नोलॉजी स्कूल के साथ ही 26 विभाग, सांइस, वाणिज्य, प्रबंधन संस्थान, सोशल सांइसेस, लॉ डिपार्टमेंट के साथ अंतरराष्ट्रीय दूरवर्ती शिक्षा केंद्र। स्थापना के वक्त कैंपस में छात्रों की संख्या थी करीब 150 इस वक्त संख्या में 4 हजार के करीब। रीजनल सेंटर धर्मशाला के 8 विभागों में करीब 600 छात्र, इवनिंग कॉलेज शिमला में 1300 छात्र, डीसीसी में ही 23 हजार छात्र हैं। पूरे वर्ष में करीब 10 लाख छात्रों के एग्जाम संपन कराता है एचपीयू
कॉलेज जो संबंद्ध हैं
विश्व विद्यालय से 1976 में 15 कॉलेज संबंद्ध थे अब संस्था के 294 शासकीय डिग्री कॉलेजों की संख्या है इसमें शासकीय कॉलेज हैं बाकी निजी कॉलेज हैं जिनमें ज्यादातर में प्रोफेशनल कोर्सेस संचालित किए जा रहे हैं।

मंगलवार, 10 अगस्त 2010

पब्लिक सर्विस में पॉवर का दुरुपयोग भी भ्रष्टाचार

जस्टिस भवानी सिंह, लोकायुक्त
मध्यप्रदेश, गुजरात और जम्मू कश्मीर में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और हिमाचल में एडवोकेट जनरल रहे जस्टिस भवानी सिंह हिमाचल के लोकायुक्त के रूप में मानते हैं कि 120 करोड़ की आबादी में पांच प्रतिशत लोग ही भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। उनका कहना है कि भ्रष्टाचार सिर्फ पैसे का लेन-देन ही नहीं अपितु पब्लिक सर्विस में पॉवर का किसी भी तरह किया जाने वाला दुरुपयोग भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। जो पांच प्रतिशत लोग करप्शन में लिप्त हैं वे भी या तो सिस्टम से ऊपर हैं या इनके सामने सिस्टम भी कमजोर पड़ जाता है।
किस राज्य में लोकायुक्त एक्ट सबसे बेहतर है?
संसद में लोकपाल विधेयक अभी तक पारित नहीं हुआ है ऐसी स्थिति में सभी राज्यों ने लोकायुक्त अधिनियम अपनी सुविधा और हालात के मुताबिक बना रखे हैं। बेस्ट एक्ट की बात करें तो कर्नाटक और मप्र का लोकायुक्त एक्ट बेहतर है वहां पुलिस मशीनरी भी लोकायुक्त को सहयोग करती है। हिमाचल में लोकायुक्त और विजिलेंस बॉडी पृथक है। लोकायुक्तके पास जो पुलिस मशीनरी है वह उन मामलों की जांच करती है जो लोकायुक्त द्वारा उसे सौंपे जाते हैं।
जांच क रते-करते पुलिस अधिकारी ही प्रभावित हो जाएं तो?
मेरा अभी तक का अनुभव है कि पुलिस प्रभावित नहीं होती और फिर पुलिस की जांच रिपोर्ट को हम भी तो एग्जामिन करते हैं।
यदि शिकायत पुलिस के ही खिलाफ हो तो?
ऐसी सारी शिकायत लोकायुक्त के साथ अटैच जिला सत्र न्यायाधीश स्तर के न्यायाधीश को या एसपी लोकायुक्त को सौंपते हैंं। हम भी जांच करते हैं। दोनों पक्षों क ो अपनी बात, प्रमाण रखने का पूरा मौका देते हैं। हमारी जांच रिपोर्ट के खिलाफ दूसरा पक्ष यदि कोर्ट में जाता भी है तो कोर्ट को हम अपने दस्तावेज दिखाने के लिए बाध्य नहीं हैं।
एक्शन टेकन रिपोर्ट पर कार्रवाई की अवधि क्या है, यदि उस अवधि में कार्रवाई न की जाए तो?
हिमाचल प्रदेश लोक आयुक्त अधिनियम 1983 के अंतर्गत जिन भी मामलों में लोकायुक्त द्वारा सरकार को रिपोर्ट भेजी जाएगी, कांपिटेंट अथॉरिटी को तीन माह में एक्शन लेना ही होगा। एक्शन न लेने की स्थिति में लोकायुक्त अपनी टीप के साथ राज्यपाल को संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए लिख सकते हैं।
अब तक कितने मामलों में राज्यपाल को लिखा गया?
तत्काल जवाब देने से पहले लोकायुक्त इन चार वर्षों में प्रतिवर्ष जारी की गई (वार्षिक) रिपोर्ट वाली किताब से प्रकरणों की जानकारी देने लगते है।
क्या कोई आंकड़ा बता पाने की स्थिति में हैं?
मैं आपको स्पष्ट आंकड़े तो नहीं बता सकता लेकिन वार्षिक रिपोर्ट में सारे आंकड़े रहते हैं। कितनी शिकायतें प्राप्त हुई, कितनी डिसाइड की गई, कितनी फाइल की गई और कितनी रिपोट्र्स सरकार को कार्रवाई के लिए भेजी गई।
कर्नाटक में लोकायुक्त ने जो कदम उठाया, क्या यहां भी ऐसे हालात बन रहे हैं?
लोकायुक्त हल्का सा मुस्कुराते हैं। कुछ कहते कहते चुप हो
जाते हैं।
आपकी चुप्पी को हां माना जाए?
कुछ नाराजी भरे स्वर में लोकायुक्त कहते हैं यह तो सरकार बता सकती है कि उनके अधिकारी एक्शन टेकन रिपोर्ट को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं।
कर्नाटक लोकायुक्त के कदम से आप सहमत हैं?
कुछ पल की चुप्पी के बाद वे कहते हैं आप मुझे क्यों उलझाना चाहते हैं। उन्होंने ठीक किया या गलत यह उनका स्वयं का डिसिजन है। जहां तक मेरा सवाल है एक्ट की शक्तियों के तहत काम कर रहा हूं।
मीडिया में प्रकाशित भ्रष्टाचार की खबरों पर आप सीधे एक्शन भी तो ले सकते हैं?
हमें स्वयं संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है। सप्रमाण लिखित शिकायत मिले साथ में शपथपत्र हो तो ही हम उसे जांच के लिए ले सकते हैं।
आप कई राज्यों में चीफ जस्टिस रहे, सरकारी विभागों में फैलते भ्रष्टाचार का क्या कारण मानते हैं?
विभागों में आम लोगों केू लंबित मामलों की फाइलें तेजी से दौडऩे लगे, काम में पारदर्शिता हो तो भ्रष्टाचार की गति अपने आप धीमी पड़ जाएगी। वैसे भी 120 करोड़ की आबादी में मात्र पांच फीसदी लोग ही करप्शन में लिप्त हैं। ये लोग या तो सिस्टम से ऊपर हैं या इनके सामने सिस्टम भी कमजोर पड़ जाता है। सिर्फ पैसे का लेनदेन ही भ्रष्टाचार नहीं है। पब्लिक सर्विस में पॉवर का किसी भी तरह किया जाने वाला दुरुपयोग भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है।
आम आदमी लोकायुक्त तक कैसे पहुंचे शिकायत करने?
आने की जरूरत नहीं है, घर बैठे भी शिकायत की जा सकती है। वह सादे कागज पर अपनी शिकायत लिखे, साथ में शपथ पत्र दे। अक्सर हमें डाक से भी शिकायतें प्राप्त होती है हमे उनमें जो आवश्यक जानकारी चाहिए होती है उसके लिए कंप्लेनेंट को फोन करते हैं। अन्य जानकारी भेजने के लिए समझाते हैं। शिकायतकर्ता कार्यालय के फोन 0177- 2623339 पर फोन करके जानकारी हासिल कर सकते हैं। हर साल 60 से 70 शिकायतें तो प्राप्त होती ही हैं।
शिकायत गलत पाई जाए तो?
इसमें भी दंड जुर्माने का प्रावधान है। गलत शपथपत्र देने पर शिकायतकर्ता को 2 साल की कैद, 5 हजार रुपए जुर्माना के साथ ही संबंधित व्यक्ति को हर्जाना भी देना होता है।
हिमाचल में प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार की स्थिति।
पूरा प्रशासन भ्रष्ट नहीं है। हर विभाग में 5 प्रतिशत अधिकारी- कर्मचारी ही ऐसे होते हैं। अच्छे कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार कर्मचारियों की संख्या ज्यादा है। हमें प्राप्त शिकायतों वाले मामलों में अधिकारी भी सहयोग करते हैं।
लोकायुक्त और सरकार के संबंध कैसे चल रहे हैं।
संबंध तो ठीक ही हैं। सरकारी शिकायतों की छानबीन कानून के मुताबिक ही की जाती है। 1983 से आज तक इन 27 वर्षों में अभी तक कोई ऐसा मामला नहीं आया जिसमें लोकायुक्त ने गवर्नर को हिमाचल लोक अधिनियम 1983 के सेक्शन 12 (3) के अंतर्गत रिपोर्ट भेजी हो। सेक्शन 12/3 ऐसे प्रकरण जिसमें कंपिटेंट अथॉरिटी द्वारा की गई कार्रवाई से लोकायुक्त संतुष्ट न हो तो राज्यपाल को लिखता है।
लोकायुक्त की फंक्शनिंग में क्या कमी लगती है?
हमारा काम तो अधिनियम के मुताबिक चल रहा है लेकिन भवन, स्टॉफ, संसाधन की कमी तो महसूस होती है। सरकार को लिखा भी है पर अभी तक कुछ हुआ नहीं है। वाहन का संकट है, लोकायुक्त का अपना भवन नहीं है, जबकि जमीन वर्षों पहले स्वीकृत की जा चुकी है। स्टॉफ की अपनी यूनिफार्म होनी चाहिए। 47 हजार के इस बजट को स्वीकृति नहीं मिली है, नतीजा यह है कि स्टॉफ खुद के खर्चे से यूनिफार्म खरीद रहा है। यह सारे प्रस्ताव/ बजट सरकार के पास मंजूरी के लिए पड़े हैं।
वीरभद्र सिंह ने फोन करके बुलाया?
गुजरात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में 27 मार्च 2006 को मेरा अंतिम दिन था। उस दिन कोर्ट में काम निपटाया और शाम को ही अपने गांव जुब्बल (हिमाचल) के लिए रवाना हो गया। कुछ ही दिनों बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का फोन आया कब आए, क्या कर रहे हो। मैने कहा अपने घर तक जाने का रास्ता बनवा रहा हूं। उन्होंने कहा सरकार ने आपका नाम लोकायुक्त के लिए फाइनल किया है आप काम संभालिए। इस तरह दूसरी बार जनसेवा में आ गया।
जो वकालत पेशे में आना चाहें
वकील और जज बनने का सपना देखने वाले बच्चे जो लॉ की पढ़ाई कर रहे हैं उनके लिए 'भास्करÓ के माध्यम से उन्होंने संदेश दिया है कि हार्डवर्क करें। वादी और अपने पेशे के प्रति ईमानदार रहें।
11 वर्ष बाद झंडा लगा श्रीनगर हाइकोर्ट भवन पर।
सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण कार्यकाल जम्मू कश्मीर के चीफ जस्टिस
के रूप में नियुक्ति को मानते हैं। उस वक्त आतंकवाद चरम पर था। 11 वर्षों से श्रीनगर स्थित हाइकोर्ट भवन राष्ट्रीय ध्वज नहीं लग पाया था। ऐसे सारे खतरों के बावजूद हाइकोर्ट बिल्डिंग पर ध्वज लगवाया। तब कारगिल वार के कारण स्थिति इतनी भयावह थी कि सीजेएम कोर्ट और ज्वूडिशियल कोर्ट कांप्लेक्स को पाकिस्तान ने उड़ा दिया था। उन्होंने युद्ध क्षेत्र का दौरा भी किया। अस्थायी रूप से कोर्ट को तब शंकु नामक स्थान पर स्थानांतरित करना पड़ा था, यह स्थान भी फायरिंग रेंज से मात्र 41 किमी दूरी पर था। इन्हीं सारे कारणों से जून 96 से 2000 तक के कार्यकाल को वे अविस्मरणीय मानते हैं।
चॢचत फैसले, सरकार हार गई
विभिन्न राज्यों में चीफ जस्टिस रहते महत्वपूर्ण फैसले तो कई लिए लेकिन हिमाचल में एक्टिंग चीफ जस्टिस रहते हुए प्रस्तुत हुई याचिका पर ही फैसला तय करने जैसी नजीर पेश की। यह अपने आप में नए किस्म का कानून साबित हुआ। हिमाचल में एक्ंिटग चीफ जस्टिस रहते नारकंडा और शिलारू के बीच बाढ़ में एक यात्री बस बह जाने पर मुआवजे को लेकर राधा सिंघा ने अपने पति (हेडमास्टर) की मौत का कारण सरकारी लापरवाही बताते हुए मुआवजे की मांग की थी। अपने फैसले में जस्टिस भवानी सिंह ने नेशनल हाईवे का रखरखाव सरकार की जिम्मेदारी बताते हुए इस प्रकरण में सरकार की नाकामी बताने के साथ ही जर्जर रोड, पुल पर आवश्यक निर्देश न लिखे होने जैसे कारणों के आधार पर मुआवजा देने का फैसला सुनाया। सरकार सुप्रीम कोर्ट भी गई लेकिन हार गई। एक अन्य फैसला डलहौजी स्कूल के 21
बच्चों के ब्यास नदी में बह जाने से संबंधित था। पिकनिक मनाने गए ये बच्चे नदी में अचानक पानी बढऩे और बहाव तेज होने के कारण बह गए थे। इनके अभिभावकों की याचिका पर जस्टिस भवानी सिंह ने इस घटना में डलहौजी स्कूल प्रशासन की लापरवाही मंानते हुए अभिभावकों को मुआवजा दिए जाने संबंधी फैसला सुनाया, इस निर्णय के खिलाफ स्कूल प्रशासन सुप्रीम कोर्ट गया वहां से निर्णय दिया गया कि रिट जूरीडिक्शन के दौरान भी मुआवजा दिया जा सकता है।
अदालतों में लंबित प्रकरणों के कारण
एक प्रमुख कारण है कि लूजिंग पार्टी जो कभी नहीं चाहती कि मामला जल्द निपटे, उसे लिटिगेशन लंबा ख्ींचने में फायदा लगता है। जिस पार्टी को मुकदमा हार जाने का अंदेशा होता है वह अनुचित गवाहों की लिस्ट टेक्निकल ऑब्जेक्शन लगाकर मामले को लंबा खींचने की कोशिश करती रहती है। ऐसे में अगर कोर्ट के बाहर दोनों पक्षों की सहमति से प्रकरणों में समझौते की स्थिति बनती है तो यह बहुत अच्छा है। इससे लंबित प्रकरणों में कमी होगी।

सोमवार, 2 अगस्त 2010

कब-कहां चट्टानें बरसने लगे पता नहीं चलता

आईआर माथुर
सीई, प्रोजेक्ट दीपक बीआरओ
सीमा क्षेत्रों में सेना के लिए मार्ग तैयार करना, पुल बनाना और सीमा क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास में भागीदारी मुख्य रूप से बीआरओ के यही काम हैै जिसे हिमाचल में प्रोजेक्ट दीपक के नाम से अंजाम दिया जा रहा है। अब बीआरओ ने इस क्षेत्र में दो प्रमुख सिंगल मार्गों को डबल रोड बनाने का काम हाथ में लिया है। हिंदुस्तान-तिब्बत को जोडऩे वाला 165 किमी लंबा सिंगल बांगतू-कोरिक मार्ग (लागत 16 सौ करोड़) और मनाली से सरचू तक करीब 222 किमी (लागत 22 सौ करोड़) मार्ग जब 2013 में डबल रोड हो जाएंगे तब हिमाचल का आर्थिक नक्शा और संपन्न नजर आएगा क्योंकि सेब ओर सब्जी का उत्पादन करने वाले अपना माल आसानी से अन्य राज्यों तक अब की अपेक्षा और जल्दी भेज सकेंगे। माल परिवहन में आसानी के साथ ही अन्य राज्यों से आने वाले सैलानियों को भी ये प्रमुख मार्ग डबल रोड हो जाने से जाम की स्थाई समस्या से राहत मिलेगी।
दुर्गम पहाड़ी रास्तों के बीच वाहनों की आवाजाही के लिए रोड निर्माण में सबसे बड़ी चुनौती रहती है पहाड़ों का धंसना या चट्टानों का खिसकना। रॉक स्लाइडिंग और मेंटेनेंस की दृष्टि से हिंदुस्तान—तिब्बत रोड बेहद चुनौतीपूर्ण है। यह मार्ग 1967 में जब बन कर तैयार हुआ था तब तक 400 जवान शहीद हो चुके थे। भास्कर से लंबी मुलाकात में जवानों की शहादत का जिक्र करते हुए प्रोजेक्ट दीपक के सीई आईआर माथुर कहते हैं ये ऐसे शहीद हैं जिनका नाम इतिहास में दर्ज हो न हो लेकिन इस रोड से सैफ ड्राइव करने वाले जब बीआरओ के काम की सराहना करते हैं तो लगता है हमारे जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं गई। काम के दौरान पता नहीं होता है कि कब पहाड़ से पत्थर— चट्टान खिसकना शुरू हो जाए। मलिंग वाला इलाका तो 1975 से ही रॉक स्लाइड के लिए ब्लैक स्पॉट जैसा है। दोनों छोर पर दो डोजर तैयार रखना पड़ते हैं। यहीं पर डोजर आपरेटर की मौत के साथ ही चट्टानों की बारिश में डोजर भी ध्वस्त हो गया था। यहां निरतंर होने वाली स्लाइडिंग बचने के लिए ही मलिंग से ऊपर नाको से एक नया रास्ता निकाला गया। मलिंग की तरह ही खदरा ढांक में भी पत्थर बरसते रहते हैं इसे बंद करके रिब्बा होते हुए रास्ता निकाल कर ब्रिज से जोड़ा गया है।
इसी तरह हिंदुस्तान —तिब्बत रोड पर 3—4 ग्लैशियर पॉइंट थे इनसे नदी ब्लाक होने की समस्या रहती थी इसके साथ ही बारिश के मौसम में सतलुज का बहाव इतना तेज हो जाता था कि 2003 और 05 में दो स्थाई ब्रिज बह गया। बीआरओ न काफी हद तक इन चुनौतियों पर काबू पा लिया है। सतलुज सहित प्रदेश की अन्य नदियों पर हाइडल प्रोजेक्ट के कारण भी इनका बहाव नियंत्रित हुआ है।
स्नोफॉल होने पर ब्रिज के हो जाते हैं बुरे हाल
बारिश से ज्यादा स्नोफॉल के कारण कई ब्रिज के बुरे हाल हो जाते हैं। मनाली सरचू रोड पर रोहतांग एवं वारलाचा ब्रिज स्नोफॉल के कारण बंद हो जाते हैं। यही कारण है कि तत्काल बाद विंटर में सारे ब्रिज रिलांच करने पड़ते हैं अन्याथा इनके टूटने का खतरा रहता है। मनाली सरचू रोड पर करीब 15 ब्रिज ऐसे हैं जिन्हें रिप्लेस करने का काम चल रहा है। रोहतांग मनाली आदि क्षेत्रों में जुलाई से अक्टूबर की अवधि में ही काम कर पाते हैं बाकी महीनों नें बर्फ या बर्फीला पानी रहता है।
वी आर गुड वर्कर, दे आर गुड मैनेजर
मुख्य अभियंता माथुर प्रोजेक्ट दीपक और लोनिवि के कार्य में किसी तरह की तुलना को नकारने के साथ ही कहते हैं कि हमारी ही तरह लोनिवि भी चुनौतियों के बीच आमजन की सुविधा के लिए काम कर रहा है। हां बेसिक डिफरेंस यह है कि वी आर गुड वर्कर, दे आर गुड मैनेजर। लोनिवि को अपना सारा काम कांट्रेक्ट आधार पर करना होता है जबकि बीआरओ के पास अपने रिसोर्सिस हैं।
उसी प्रोजेक्ट में सर्वोच्च पद पर
हिंदुस्तान तिब्बत मार्ग पर १९८४ से ८६ के बीच असिस्टेंट एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के रूप में हिमाचल में पदस्थ रहे आइआर माथुर ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन वे इसी प्रोजेक्ट दीपक में सीइ जैसे सर्वोच्च पद पर हिमाचल में पदस्थ होंगे। वे फरवरी २००९ से सीइ के रूप में कार्य देख रहे हैं। इस पद पर कार्य करने को वे इसलिए भी महत्वपूर्ण मानते है कि केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के अंर्तगत आने वाले बीआरओ में आर्मी ऑफिसर ही चीफ इंजीनियर पदस्थ किए जाते रहे हंै। माथुर ऐसे दूसरे अधिकारी हैं जो सिविल इंजीनियरिंग से हैं। उनसे पहले एनएन लांबा सीइ रहे हैं। करीब ६०० जवानों और अधिकारियों का अमला उनके मातहत है। बीआरओ का मुख्यालय दिल्ली में हैं। नवंबर ०९ में डीजीपी एमसी बदानी भी हिमाचल में बीआरओ की वर्किंग देखने आ चुके हैं।