गुरुवार, 15 जुलाई 2010

हर जिले में मिडिएशन सेंटर स्थापित करेंगे



हिमाचल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस कुरियन जोसेफ का मन भी कोर्ट के फैसलों से हटकर कुछ लिखने के लिए छटपटाता रहता है लेकिन वक्त नहीं मिलता। नियमित 16 से 18 घंटे की वर्किंग रहती है। हाई कोर्ट के बाद का समय रीडिंग के लिए रहता है। टीवी देखते नहीं और फिल्म देखे तो वर्षों हो गए। बचपन से लेकर अब बमुश्किल 20 फिल्में देखी होंगी। हिमाचल में उन्होंने चीफ जस्टिस पद की शपथ ली और कुछ दिनों बाद ही झारखंड में पदस्थ किए जाने के आदेश जारी हो गए थे। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने वह आदेश वापस ले लिया है। हिंदी बोल और समझ पाने में वे थोड़ी असुविधा जरूर महसूस करते हैं लेकिन आम आदमी की शीघ्र न्याय की अपेक्षा को वे बेहतर समझते हैं और जिस दिन से उन्होंने शपथ ली है उसी क्षण से बस उसी एक सूत्रीय एजेंडे पर वर्किंग कर रहे हैं कि शहर से लेकर गांव तक लोगों को त्वरित न्याय कैसे मिले। वरिष्ठ नागरिकों के न्यायालयीन मामलों का जल्द से जल्द निराकरण कैसे हो। उनकी सोच है कि न्याय मिलने में दस-बीस साल की देरी का मतलब है लोगों में हताशा के साथ, न्याय व्यवस्था से विश्वास उठना और भ्रष्टाचार फैलना।


मामलों के फटाफट निराकरण के संदर्भ में अपनी फ्यूचर प्लानिंग का खुलासा करते हुए उन्होंने भास्कर से चर्चा में कहा इसी साल के अंत तक हिमाचल के सभी जिलों मेंं मिडिएशन सेंटर स्थापित करना हैै। जिलों में ऐसे मामलों की छंटनी की जाएगी जिनमें वर्षों से तारीख पर तारीख पड़ रही है। ऐसे मामले मिडिएशन सेंटर के माध्यम से निपटाए जाएंगे। वादी प्रतिवादी दोनों को आमने सामने बैठाकर न्यायाधीश की मौजूदगी में समझौते के लिए दोनों पक्षों को राजी किया जाएगा।


ज्यूडिशियल स्टाफ को ट्रेङ्क्षनग देनी होगी


चीफ जस्टिस मानते हैं कि बिना ट्रेंड स्टाफ के मिडिएशन सेेंटर सक्सेस नहीे हो पाएंगे। चूंकि अभी स्टाफ ट्रेंड नहीं है इस कारण मिडिएशन के मकसद को समझता भी नहीं हैं। न्यायालयों के स्टाफ को इस संबंध में ट्रेनिंग देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी गठित कर रखी है इसकी सेवाएं लेंगे। स्टेट एवं जिला स्तर पर यह कमेटी विभिन्न कार्य दिवसों में न्यायालयीन स्टाफ के 15-15 सदस्यों को 40 घंटे का प्रशिक्षण देगी। दिल्ली, मुंबई, कर्नाटक के एक्सपर्ट अगले महीने से प्रशिक्षण देने आ रहे हैं। इन मिडिएशन सेंटरों के काम शुरू करने के बाद पेंडिंग मामलों में 30 फीसदी कमी आ जाएगी।


देश के कुछ बड़े शहरों की तर्ज पर हिमाचल में इवङ्क्षनग कोर्ट प्रारंभ करने में थोड़ा वक्त जरूर लगेगा लेकिन लंबित मामलों के शीघ्र निराकरण की दृष्टि से यह बेहद जरूरी भी है। जहो तक ई-फाइलिंग सिस्टम ज्यूडिशियल में लागू करना हर दृष्टि से बेहतर तो है लेकिन इसके लिए कोर्ट स्टाफ में नॉलेज, ट्रेङ्क्षनग और पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर होना भी जरूरी है। न सिर्फ स्टाफ वरन जजेस को भी ट्रेङ्क्षनग देना होगी, ई-फाइलिंग उपयोगी तो है लेकिन प्रोसेस जरा लंबा है।


ई-फाइलिंग शुरू होने के बाद तो न्यायालयों में मानसिक दबाव कम होने के साथ ही खर्च भी कम हो जाएगा। मैंने इससे पहले की व्यवस्था के तहत हिमाचल सरकार को सुझाव दिया है क्रेडिट कार्ड से कोर्ट फी जमा करने की व्यवस्था लागू की जानी चाहिए। इससे वकीलों का काम आसान होगा, टाइम, स्टेशनरी, आडिटिंग आदि की झंझट से भी राहत मिलेगी। कोर्ट वर्किंग में इंटरनेट का उपयोग बढऩे पर पल भर में कोर्ट फीस ट्रांसफर भी की जा सकेगी।


...सरकार पर निर्भर


सरकार स्तर पर ग्राम न्यायालय, मोबाइल कोर्ट की दिशा में तत्परता दिखाए जाने पर जो सबसे बड़ी राहत मिल सकती है वह यह कि ग्राम न्यायालयों से अधिकतम 90 दिनों में फैसले सुनाए जा सकेंगे। गांव-देहात के लोगों को न्यायालय के चक्कर लगाने और जटिल प्रक्रिया से भी राहत मिल जाएगी। मेरे स्तर पर तो सरकार को विस्तार से लिखा जा चुका है,अब सब कुछ हिमाचल सरकार पर निर्भर करता है। इस पर शीघ्र काम होना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि राज्य में 18 रेवन्यू कोर्ट होने के बावजूद लोग हर तारीख पेशी पर नहीं जा पाते हैं।


पर्यावरणीय सुरक्षा प्रदान करेगी ग्रीन बैच


ग्रीन बैच के फायदे अभी भले ही नजर नहीं आ रहे लेकिन हिमाचल प्रदेश के पर्यावरणीय हितों की रक्षा के लिए यह बहुत उपयोगी साबित होगी। किसी भी तरह के पर्यावरण की अनदेखी, नियमों के उल्लंघन के मामलों की इसी बैंच में सुनवाई होने से मामलों में शीघ्र परिणाम मिल सकेंगे।


रूबी जुबली से परिवार की फीलिंग


हिमाचल हाइकोर्ट की स्थापना के चालीस वर्ष पूर्ण होने पर शुरू किए गए रूबी जुबली समारोह के संदर्भ में उनका कहना है चाहे हाई कोर्ट का स्थापना दिवस हो या इस तरह के कार्यक्रम इनमें स्टाफ से लेकर लायर्स, मुंशी, आम लोगों की भागीदारी होने से वर्क कल्चर तो सुधरता ही है, परिवार की फीलिंग भी आती है। वैसे भी उत्सव बिना तो जीवन ही बेकार है। जिलों में कोर्ट कार्यों में तेजी के लिए स्वयं मैंने जिला कोर्ट में सुनवाई शुरू की है। सोलन के बाद अब अगला कैंप बिलासपुर में होगा।


लीगल अवेयरनेस की कमी


दक्षिण के राज्यों की अपेक्षा हिमाचल में लीगल अवेयरनेस काफी कम है। इसका एक प्रमुख कारण लीगल लिट्रेसी की कमी होना भी है। लीगल लिट्रेसी की क्लासेस के साथ ही स्कूली बच्चों को कानून की प्राथमिक जानकारी से अवगत कराने के लिए प्रशासन के साथ मिलकर कार्यक्रम चलाने की भी प्लाङ्क्षनग है।


हाईकोर्ट में मीडिया रूम की स्थापना के बाद अब शीघ्र ही एक जनसंपर्क अधिकारी भी पदस्थ किया जा रहा है। इसके पीछे उद्देश्य यही है कि मीडिया की कोर्ट संबंधी वर्किंग को आसान बनाया जा सके। अभी कई मामलों में जो कोर्ट की अवमानना, कोर्ट में सुनाए गए जनहित के किसी फैसले की रिपोर्टिंग को लेकर जो पशोपेश की स्थिति बनती रहती है ऐसे सारे हालात में हाईकोर्ट पीआरओ सेतु का काम करेगा। इसी के साथ हाईकोर्ट में सत्कार अधिकारी का पद भी का पद भी सृजित किया जा रहा है।


हिमाचल हर मामले में टॉप पर रहे मुख्य न्यायाधीश जोसेफ को हिमाचल का प्राकृतिक, नैसॢगक सौंदर्य बहुत अच्छा लगता है। इस प्रदेश के लोगों के संदर्भ में उनका कहना है यहां के लोग आनेस्ट, सिंसियर और स्टेट फारवर्ड और साफ दिल के हैं। सीजे कुरियन की दिली तमन्ना है कि न सिर्फ शीघ्र न्याय बल्कि हर क्षेत्र में हिमाचल हिमालय की तरह टॉप पर रहे।


(चीफ जस्टिस के साथ इस लंबी बातचीत में भास्कर के सहयोगी वरिष्ठ एडवोकेट अजय वैद्य का भी सहयोग रहा।)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें