सोमवार, 2 अगस्त 2010

कब-कहां चट्टानें बरसने लगे पता नहीं चलता

आईआर माथुर
सीई, प्रोजेक्ट दीपक बीआरओ
सीमा क्षेत्रों में सेना के लिए मार्ग तैयार करना, पुल बनाना और सीमा क्षेत्रों में सामाजिक-आर्थिक विकास में भागीदारी मुख्य रूप से बीआरओ के यही काम हैै जिसे हिमाचल में प्रोजेक्ट दीपक के नाम से अंजाम दिया जा रहा है। अब बीआरओ ने इस क्षेत्र में दो प्रमुख सिंगल मार्गों को डबल रोड बनाने का काम हाथ में लिया है। हिंदुस्तान-तिब्बत को जोडऩे वाला 165 किमी लंबा सिंगल बांगतू-कोरिक मार्ग (लागत 16 सौ करोड़) और मनाली से सरचू तक करीब 222 किमी (लागत 22 सौ करोड़) मार्ग जब 2013 में डबल रोड हो जाएंगे तब हिमाचल का आर्थिक नक्शा और संपन्न नजर आएगा क्योंकि सेब ओर सब्जी का उत्पादन करने वाले अपना माल आसानी से अन्य राज्यों तक अब की अपेक्षा और जल्दी भेज सकेंगे। माल परिवहन में आसानी के साथ ही अन्य राज्यों से आने वाले सैलानियों को भी ये प्रमुख मार्ग डबल रोड हो जाने से जाम की स्थाई समस्या से राहत मिलेगी।
दुर्गम पहाड़ी रास्तों के बीच वाहनों की आवाजाही के लिए रोड निर्माण में सबसे बड़ी चुनौती रहती है पहाड़ों का धंसना या चट्टानों का खिसकना। रॉक स्लाइडिंग और मेंटेनेंस की दृष्टि से हिंदुस्तान—तिब्बत रोड बेहद चुनौतीपूर्ण है। यह मार्ग 1967 में जब बन कर तैयार हुआ था तब तक 400 जवान शहीद हो चुके थे। भास्कर से लंबी मुलाकात में जवानों की शहादत का जिक्र करते हुए प्रोजेक्ट दीपक के सीई आईआर माथुर कहते हैं ये ऐसे शहीद हैं जिनका नाम इतिहास में दर्ज हो न हो लेकिन इस रोड से सैफ ड्राइव करने वाले जब बीआरओ के काम की सराहना करते हैं तो लगता है हमारे जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं गई। काम के दौरान पता नहीं होता है कि कब पहाड़ से पत्थर— चट्टान खिसकना शुरू हो जाए। मलिंग वाला इलाका तो 1975 से ही रॉक स्लाइड के लिए ब्लैक स्पॉट जैसा है। दोनों छोर पर दो डोजर तैयार रखना पड़ते हैं। यहीं पर डोजर आपरेटर की मौत के साथ ही चट्टानों की बारिश में डोजर भी ध्वस्त हो गया था। यहां निरतंर होने वाली स्लाइडिंग बचने के लिए ही मलिंग से ऊपर नाको से एक नया रास्ता निकाला गया। मलिंग की तरह ही खदरा ढांक में भी पत्थर बरसते रहते हैं इसे बंद करके रिब्बा होते हुए रास्ता निकाल कर ब्रिज से जोड़ा गया है।
इसी तरह हिंदुस्तान —तिब्बत रोड पर 3—4 ग्लैशियर पॉइंट थे इनसे नदी ब्लाक होने की समस्या रहती थी इसके साथ ही बारिश के मौसम में सतलुज का बहाव इतना तेज हो जाता था कि 2003 और 05 में दो स्थाई ब्रिज बह गया। बीआरओ न काफी हद तक इन चुनौतियों पर काबू पा लिया है। सतलुज सहित प्रदेश की अन्य नदियों पर हाइडल प्रोजेक्ट के कारण भी इनका बहाव नियंत्रित हुआ है।
स्नोफॉल होने पर ब्रिज के हो जाते हैं बुरे हाल
बारिश से ज्यादा स्नोफॉल के कारण कई ब्रिज के बुरे हाल हो जाते हैं। मनाली सरचू रोड पर रोहतांग एवं वारलाचा ब्रिज स्नोफॉल के कारण बंद हो जाते हैं। यही कारण है कि तत्काल बाद विंटर में सारे ब्रिज रिलांच करने पड़ते हैं अन्याथा इनके टूटने का खतरा रहता है। मनाली सरचू रोड पर करीब 15 ब्रिज ऐसे हैं जिन्हें रिप्लेस करने का काम चल रहा है। रोहतांग मनाली आदि क्षेत्रों में जुलाई से अक्टूबर की अवधि में ही काम कर पाते हैं बाकी महीनों नें बर्फ या बर्फीला पानी रहता है।
वी आर गुड वर्कर, दे आर गुड मैनेजर
मुख्य अभियंता माथुर प्रोजेक्ट दीपक और लोनिवि के कार्य में किसी तरह की तुलना को नकारने के साथ ही कहते हैं कि हमारी ही तरह लोनिवि भी चुनौतियों के बीच आमजन की सुविधा के लिए काम कर रहा है। हां बेसिक डिफरेंस यह है कि वी आर गुड वर्कर, दे आर गुड मैनेजर। लोनिवि को अपना सारा काम कांट्रेक्ट आधार पर करना होता है जबकि बीआरओ के पास अपने रिसोर्सिस हैं।
उसी प्रोजेक्ट में सर्वोच्च पद पर
हिंदुस्तान तिब्बत मार्ग पर १९८४ से ८६ के बीच असिस्टेंट एग्जीक्यूटिव इंजीनियर के रूप में हिमाचल में पदस्थ रहे आइआर माथुर ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन वे इसी प्रोजेक्ट दीपक में सीइ जैसे सर्वोच्च पद पर हिमाचल में पदस्थ होंगे। वे फरवरी २००९ से सीइ के रूप में कार्य देख रहे हैं। इस पद पर कार्य करने को वे इसलिए भी महत्वपूर्ण मानते है कि केंद्रीय रक्षा मंत्रालय के अंर्तगत आने वाले बीआरओ में आर्मी ऑफिसर ही चीफ इंजीनियर पदस्थ किए जाते रहे हंै। माथुर ऐसे दूसरे अधिकारी हैं जो सिविल इंजीनियरिंग से हैं। उनसे पहले एनएन लांबा सीइ रहे हैं। करीब ६०० जवानों और अधिकारियों का अमला उनके मातहत है। बीआरओ का मुख्यालय दिल्ली में हैं। नवंबर ०९ में डीजीपी एमसी बदानी भी हिमाचल में बीआरओ की वर्किंग देखने आ चुके हैं।

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