मंगलवार, 10 अगस्त 2010

पब्लिक सर्विस में पॉवर का दुरुपयोग भी भ्रष्टाचार

जस्टिस भवानी सिंह, लोकायुक्त
मध्यप्रदेश, गुजरात और जम्मू कश्मीर में हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस और हिमाचल में एडवोकेट जनरल रहे जस्टिस भवानी सिंह हिमाचल के लोकायुक्त के रूप में मानते हैं कि 120 करोड़ की आबादी में पांच प्रतिशत लोग ही भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। उनका कहना है कि भ्रष्टाचार सिर्फ पैसे का लेन-देन ही नहीं अपितु पब्लिक सर्विस में पॉवर का किसी भी तरह किया जाने वाला दुरुपयोग भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। जो पांच प्रतिशत लोग करप्शन में लिप्त हैं वे भी या तो सिस्टम से ऊपर हैं या इनके सामने सिस्टम भी कमजोर पड़ जाता है।
किस राज्य में लोकायुक्त एक्ट सबसे बेहतर है?
संसद में लोकपाल विधेयक अभी तक पारित नहीं हुआ है ऐसी स्थिति में सभी राज्यों ने लोकायुक्त अधिनियम अपनी सुविधा और हालात के मुताबिक बना रखे हैं। बेस्ट एक्ट की बात करें तो कर्नाटक और मप्र का लोकायुक्त एक्ट बेहतर है वहां पुलिस मशीनरी भी लोकायुक्त को सहयोग करती है। हिमाचल में लोकायुक्त और विजिलेंस बॉडी पृथक है। लोकायुक्तके पास जो पुलिस मशीनरी है वह उन मामलों की जांच करती है जो लोकायुक्त द्वारा उसे सौंपे जाते हैं।
जांच क रते-करते पुलिस अधिकारी ही प्रभावित हो जाएं तो?
मेरा अभी तक का अनुभव है कि पुलिस प्रभावित नहीं होती और फिर पुलिस की जांच रिपोर्ट को हम भी तो एग्जामिन करते हैं।
यदि शिकायत पुलिस के ही खिलाफ हो तो?
ऐसी सारी शिकायत लोकायुक्त के साथ अटैच जिला सत्र न्यायाधीश स्तर के न्यायाधीश को या एसपी लोकायुक्त को सौंपते हैंं। हम भी जांच करते हैं। दोनों पक्षों क ो अपनी बात, प्रमाण रखने का पूरा मौका देते हैं। हमारी जांच रिपोर्ट के खिलाफ दूसरा पक्ष यदि कोर्ट में जाता भी है तो कोर्ट को हम अपने दस्तावेज दिखाने के लिए बाध्य नहीं हैं।
एक्शन टेकन रिपोर्ट पर कार्रवाई की अवधि क्या है, यदि उस अवधि में कार्रवाई न की जाए तो?
हिमाचल प्रदेश लोक आयुक्त अधिनियम 1983 के अंतर्गत जिन भी मामलों में लोकायुक्त द्वारा सरकार को रिपोर्ट भेजी जाएगी, कांपिटेंट अथॉरिटी को तीन माह में एक्शन लेना ही होगा। एक्शन न लेने की स्थिति में लोकायुक्त अपनी टीप के साथ राज्यपाल को संबंधित अधिकारियों पर कार्रवाई के लिए लिख सकते हैं।
अब तक कितने मामलों में राज्यपाल को लिखा गया?
तत्काल जवाब देने से पहले लोकायुक्त इन चार वर्षों में प्रतिवर्ष जारी की गई (वार्षिक) रिपोर्ट वाली किताब से प्रकरणों की जानकारी देने लगते है।
क्या कोई आंकड़ा बता पाने की स्थिति में हैं?
मैं आपको स्पष्ट आंकड़े तो नहीं बता सकता लेकिन वार्षिक रिपोर्ट में सारे आंकड़े रहते हैं। कितनी शिकायतें प्राप्त हुई, कितनी डिसाइड की गई, कितनी फाइल की गई और कितनी रिपोट्र्स सरकार को कार्रवाई के लिए भेजी गई।
कर्नाटक में लोकायुक्त ने जो कदम उठाया, क्या यहां भी ऐसे हालात बन रहे हैं?
लोकायुक्त हल्का सा मुस्कुराते हैं। कुछ कहते कहते चुप हो
जाते हैं।
आपकी चुप्पी को हां माना जाए?
कुछ नाराजी भरे स्वर में लोकायुक्त कहते हैं यह तो सरकार बता सकती है कि उनके अधिकारी एक्शन टेकन रिपोर्ट को कितनी गंभीरता से ले रहे हैं।
कर्नाटक लोकायुक्त के कदम से आप सहमत हैं?
कुछ पल की चुप्पी के बाद वे कहते हैं आप मुझे क्यों उलझाना चाहते हैं। उन्होंने ठीक किया या गलत यह उनका स्वयं का डिसिजन है। जहां तक मेरा सवाल है एक्ट की शक्तियों के तहत काम कर रहा हूं।
मीडिया में प्रकाशित भ्रष्टाचार की खबरों पर आप सीधे एक्शन भी तो ले सकते हैं?
हमें स्वयं संज्ञान लेने का अधिकार नहीं है। सप्रमाण लिखित शिकायत मिले साथ में शपथपत्र हो तो ही हम उसे जांच के लिए ले सकते हैं।
आप कई राज्यों में चीफ जस्टिस रहे, सरकारी विभागों में फैलते भ्रष्टाचार का क्या कारण मानते हैं?
विभागों में आम लोगों केू लंबित मामलों की फाइलें तेजी से दौडऩे लगे, काम में पारदर्शिता हो तो भ्रष्टाचार की गति अपने आप धीमी पड़ जाएगी। वैसे भी 120 करोड़ की आबादी में मात्र पांच फीसदी लोग ही करप्शन में लिप्त हैं। ये लोग या तो सिस्टम से ऊपर हैं या इनके सामने सिस्टम भी कमजोर पड़ जाता है। सिर्फ पैसे का लेनदेन ही भ्रष्टाचार नहीं है। पब्लिक सर्विस में पॉवर का किसी भी तरह किया जाने वाला दुरुपयोग भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है।
आम आदमी लोकायुक्त तक कैसे पहुंचे शिकायत करने?
आने की जरूरत नहीं है, घर बैठे भी शिकायत की जा सकती है। वह सादे कागज पर अपनी शिकायत लिखे, साथ में शपथ पत्र दे। अक्सर हमें डाक से भी शिकायतें प्राप्त होती है हमे उनमें जो आवश्यक जानकारी चाहिए होती है उसके लिए कंप्लेनेंट को फोन करते हैं। अन्य जानकारी भेजने के लिए समझाते हैं। शिकायतकर्ता कार्यालय के फोन 0177- 2623339 पर फोन करके जानकारी हासिल कर सकते हैं। हर साल 60 से 70 शिकायतें तो प्राप्त होती ही हैं।
शिकायत गलत पाई जाए तो?
इसमें भी दंड जुर्माने का प्रावधान है। गलत शपथपत्र देने पर शिकायतकर्ता को 2 साल की कैद, 5 हजार रुपए जुर्माना के साथ ही संबंधित व्यक्ति को हर्जाना भी देना होता है।
हिमाचल में प्रशासनिक स्तर पर भ्रष्टाचार की स्थिति।
पूरा प्रशासन भ्रष्ट नहीं है। हर विभाग में 5 प्रतिशत अधिकारी- कर्मचारी ही ऐसे होते हैं। अच्छे कर्तव्यनिष्ठ, ईमानदार कर्मचारियों की संख्या ज्यादा है। हमें प्राप्त शिकायतों वाले मामलों में अधिकारी भी सहयोग करते हैं।
लोकायुक्त और सरकार के संबंध कैसे चल रहे हैं।
संबंध तो ठीक ही हैं। सरकारी शिकायतों की छानबीन कानून के मुताबिक ही की जाती है। 1983 से आज तक इन 27 वर्षों में अभी तक कोई ऐसा मामला नहीं आया जिसमें लोकायुक्त ने गवर्नर को हिमाचल लोक अधिनियम 1983 के सेक्शन 12 (3) के अंतर्गत रिपोर्ट भेजी हो। सेक्शन 12/3 ऐसे प्रकरण जिसमें कंपिटेंट अथॉरिटी द्वारा की गई कार्रवाई से लोकायुक्त संतुष्ट न हो तो राज्यपाल को लिखता है।
लोकायुक्त की फंक्शनिंग में क्या कमी लगती है?
हमारा काम तो अधिनियम के मुताबिक चल रहा है लेकिन भवन, स्टॉफ, संसाधन की कमी तो महसूस होती है। सरकार को लिखा भी है पर अभी तक कुछ हुआ नहीं है। वाहन का संकट है, लोकायुक्त का अपना भवन नहीं है, जबकि जमीन वर्षों पहले स्वीकृत की जा चुकी है। स्टॉफ की अपनी यूनिफार्म होनी चाहिए। 47 हजार के इस बजट को स्वीकृति नहीं मिली है, नतीजा यह है कि स्टॉफ खुद के खर्चे से यूनिफार्म खरीद रहा है। यह सारे प्रस्ताव/ बजट सरकार के पास मंजूरी के लिए पड़े हैं।
वीरभद्र सिंह ने फोन करके बुलाया?
गुजरात हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में 27 मार्च 2006 को मेरा अंतिम दिन था। उस दिन कोर्ट में काम निपटाया और शाम को ही अपने गांव जुब्बल (हिमाचल) के लिए रवाना हो गया। कुछ ही दिनों बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह का फोन आया कब आए, क्या कर रहे हो। मैने कहा अपने घर तक जाने का रास्ता बनवा रहा हूं। उन्होंने कहा सरकार ने आपका नाम लोकायुक्त के लिए फाइनल किया है आप काम संभालिए। इस तरह दूसरी बार जनसेवा में आ गया।
जो वकालत पेशे में आना चाहें
वकील और जज बनने का सपना देखने वाले बच्चे जो लॉ की पढ़ाई कर रहे हैं उनके लिए 'भास्करÓ के माध्यम से उन्होंने संदेश दिया है कि हार्डवर्क करें। वादी और अपने पेशे के प्रति ईमानदार रहें।
11 वर्ष बाद झंडा लगा श्रीनगर हाइकोर्ट भवन पर।
सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण कार्यकाल जम्मू कश्मीर के चीफ जस्टिस
के रूप में नियुक्ति को मानते हैं। उस वक्त आतंकवाद चरम पर था। 11 वर्षों से श्रीनगर स्थित हाइकोर्ट भवन राष्ट्रीय ध्वज नहीं लग पाया था। ऐसे सारे खतरों के बावजूद हाइकोर्ट बिल्डिंग पर ध्वज लगवाया। तब कारगिल वार के कारण स्थिति इतनी भयावह थी कि सीजेएम कोर्ट और ज्वूडिशियल कोर्ट कांप्लेक्स को पाकिस्तान ने उड़ा दिया था। उन्होंने युद्ध क्षेत्र का दौरा भी किया। अस्थायी रूप से कोर्ट को तब शंकु नामक स्थान पर स्थानांतरित करना पड़ा था, यह स्थान भी फायरिंग रेंज से मात्र 41 किमी दूरी पर था। इन्हीं सारे कारणों से जून 96 से 2000 तक के कार्यकाल को वे अविस्मरणीय मानते हैं।
चॢचत फैसले, सरकार हार गई
विभिन्न राज्यों में चीफ जस्टिस रहते महत्वपूर्ण फैसले तो कई लिए लेकिन हिमाचल में एक्टिंग चीफ जस्टिस रहते हुए प्रस्तुत हुई याचिका पर ही फैसला तय करने जैसी नजीर पेश की। यह अपने आप में नए किस्म का कानून साबित हुआ। हिमाचल में एक्ंिटग चीफ जस्टिस रहते नारकंडा और शिलारू के बीच बाढ़ में एक यात्री बस बह जाने पर मुआवजे को लेकर राधा सिंघा ने अपने पति (हेडमास्टर) की मौत का कारण सरकारी लापरवाही बताते हुए मुआवजे की मांग की थी। अपने फैसले में जस्टिस भवानी सिंह ने नेशनल हाईवे का रखरखाव सरकार की जिम्मेदारी बताते हुए इस प्रकरण में सरकार की नाकामी बताने के साथ ही जर्जर रोड, पुल पर आवश्यक निर्देश न लिखे होने जैसे कारणों के आधार पर मुआवजा देने का फैसला सुनाया। सरकार सुप्रीम कोर्ट भी गई लेकिन हार गई। एक अन्य फैसला डलहौजी स्कूल के 21
बच्चों के ब्यास नदी में बह जाने से संबंधित था। पिकनिक मनाने गए ये बच्चे नदी में अचानक पानी बढऩे और बहाव तेज होने के कारण बह गए थे। इनके अभिभावकों की याचिका पर जस्टिस भवानी सिंह ने इस घटना में डलहौजी स्कूल प्रशासन की लापरवाही मंानते हुए अभिभावकों को मुआवजा दिए जाने संबंधी फैसला सुनाया, इस निर्णय के खिलाफ स्कूल प्रशासन सुप्रीम कोर्ट गया वहां से निर्णय दिया गया कि रिट जूरीडिक्शन के दौरान भी मुआवजा दिया जा सकता है।
अदालतों में लंबित प्रकरणों के कारण
एक प्रमुख कारण है कि लूजिंग पार्टी जो कभी नहीं चाहती कि मामला जल्द निपटे, उसे लिटिगेशन लंबा ख्ींचने में फायदा लगता है। जिस पार्टी को मुकदमा हार जाने का अंदेशा होता है वह अनुचित गवाहों की लिस्ट टेक्निकल ऑब्जेक्शन लगाकर मामले को लंबा खींचने की कोशिश करती रहती है। ऐसे में अगर कोर्ट के बाहर दोनों पक्षों की सहमति से प्रकरणों में समझौते की स्थिति बनती है तो यह बहुत अच्छा है। इससे लंबित प्रकरणों में कमी होगी।

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